पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/२७२

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१९" बौर-पम-पराग एक महायान ग्रन्थ का कहना है कि महाकरुणा ही मोक्ष का उपाय है। हीनयान- वादी इस मोनोपाय को नहीं रखता। उसकी प्रशा असमर्थ है, क्योंकि वह पाप-शोधन का उपाय नहीं रखता। महायान ग्रन्थों के अनुसार जो बुद्धल की प्राप्ति के लिए. यत्नवान् है, अर्थात् जो बोधिसत्व है, उसे षट्पारमिता का ग्रहण करना चाहिए । दान-शीलादि गुणों में जिसने पूर्णता प्राप्त की है, उसके लिए कहा जाता है कि इसने दान-शीलादि पारमिता हस्तगत कर ली है। यही बोधिसत्व-शिक्षा है और इसी को बोधिचर्या कहते हैं। घट पारमितायें निम्नलिखित है- दान, शील, शान्ति, वीर्य, ध्यान और प्रशा । षट् पारमिता प्रज्ञापारमिता का प्राधान्य है। प्रज्ञापारमिता यथार्थज्ञान को कहते हैं। इसका दूसरा नाम भूत-तथता है। प्रज्ञा के बिना पुनर्भव का अन्त नहीं होता। प्रज्ञा की प्राप्ति के लिए ही अन्य पारमिताओं को शिक्षा कही गई है । प्रज्ञा द्वारा परिशोधित होने पर ही दान आदि पूर्णता को प्राप्त होते हैं, और 'पारमिता' का व्यपदेश प्राप्त करते हैं । बुद्धत्व की प्राप्ति में इस पुण्य-संभार की परिणामना होने के कारण ही इनकी पारमिता सार्थक होती है । यह पंच पारमिता प्रज्ञा-रहित होने पर लौकिक कहलाती है। उदाहरण के लिए जबतक दाता भिक्षु, दान और अपने अस्तित्व में विश्वास रखता है, तब तक उसकी दान-पारमिता लौकिक होती है; पर जब वह इन तीनों के शून्य-माय को मानता है, तब उसकी पारमिता लोकोत्तर कहलाती है। जब पंच-पारमितायें प्रज्ञा-पारमिता से समन्वागत होती है, तभी वह सचक्षुष्क होती है, और उसको लोकोत्तर-संज्ञा प्राप्त होती है। प्रशा की प्रधानता होते हुए भी अन्य पारमिताओं का ग्रहण नितान्त आवश्यक है । संबोधि की प्राप्ति में दान प्रथम कारण है, शील दूसरा कारण है । दान, शील की अनुपालना क्षान्ति द्वारा होती है। दानादि-त्रितय पुण्य-संभार, वीर्य अर्थात् कुशलोत्साह के बिना नहीं हो सकता । और बिना ध्यान अर्थात् चित्तैकाग्रता के प्रज्ञा का प्रादुर्भाव नहीं होता, क्योकि समाहित-चित्त होने से ही यथाभूत-परिचान होता है, जिससे सब श्रावरणों की अत्यंत हानि होती है। इसी बोधिचर्या का वर्णन शान्तिदेव ने बोधिचर्यावतार तथा शिक्षासमुच्चय में विशेष रूप से किया है । शान्तिदेव महायान धर्म के एक प्रसिद्ध शास्त्रकार हो गये हैं। इनके अन्यों के आधार पर हम बोधिचर्या का वर्णन करेंगे । बोधिबिच तथा बोधिचर्या मनुष्य-भाव की प्राप्ति दुर्लभ है। इसी भाव में परम पुरुषार्थ अभ्युदय और निःश्रेस् की प्राप्ति के साधन उपलब्ध होते हैं। यही भाव अक्षणों से विनिमुक हैं। अक्षणावस्था में 1. भाउ अक्षण ये है:-नरकोपपत्ति, तिर्यगुपपत्ति, यमखोकोपपत्ति, प्रत्यंतजनपदोपपति, दीर्घायुषदेवोपपत्ति, इन्द्रियविकाता, मिष्याधि, और चित्तोत्पादविरागितता। (धर्मसंग्रह)।