पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/३०९

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एकादश अध्याय बौद्ध दर्शन को भूमिका भारत के जितने दर्शन हैं, उनका लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति है । इस अर्थ में सब दर्शन मोक्ष-शास्त्र है । विज्ञानमिक्षु सांख्यप्रवचनभाष्य की भूमिका में लिखते हैं कि मोक्ष-शास्त्र चिकित्सा-शास्त्र के समान चतुयूँह है । जिस प्रकार रोग, आरोग्य, रोग का निदान और औषध यह चार व्यूह चिकित्सा शास्त्र के प्रतिपाद्य हैं, उसी प्रकार हेय, हान, हेय-हेतु और हानोपाय यह चार मोन्त-शास्त्र के प्रतिपाद्य हैं। त्रिविध दुःख हेय' है; उनकी प्रात्यन्तिक निवृत्ति हान' है; अविद्या हेय-हेतु' हैं और तत्वज्ञान 'हानोपाप' है। यही चार व्यूह पाताल योग-सूत्र में भी पाए जाते हैं। किन्तु न्याय-शास्त्र में हेय-हेतु को हेय के अन्तर्भूत माना है; 'हाना को तत्वज्ञान बताया है और 'उपाय शास्त्र है। न्याय-शास्त्र में इनको अर्थ-पद कहा है । वाचस्पति- मिश्र ( तात्पर्यटीका ) के अनुसार अर्थ-पद का अर्थ पुरुषार्थ का स्थान है। वार्तिककार कहते हैं कि सब अध्यात्म विद्याओं में सब प्राचार्य इन चार अर्थ-पदों का वर्णन करते हैं । न्याय की परिभाषा में यह चार अर्थ-यद इस प्रकार हैं:-१. हेय, अर्थात् दुःख और उसका निर्वर्तक ( उत्पादक) अर्थात् दुःख-हेतु; २. श्रात्यन्तिक-हान, अर्थात् दु.ख-निवृत्तिरूप मोक्ष का कारण अर्थात् तत्वज्ञान; ३. उसका उपाय (शास), ४. अधिगन्तव्य, अर्थात् लभ्य मोक्ष (१,१,१ पर न्याय-भाष्य)। इसी प्रकार बौद्धदर्शन की चतु:सूत्री है । यह चार आर्य-सत्य है:- दुःख, दुःख-हेतु, दुःखनिरोध, और दुःख-निरोध-गामिनी प्रतिपत्ति (मार्ग)। सांख्य-शास्त्र के अनुसार प्रकृति और पुरुष के संयोग द्वारा जो अविवेक होता है, वह दुःख का हेतु है और विवेक ख्याति अर्थात् तत्वज्ञान ही दुःख-निवृत्ति का उपाय है; क्योंकि इस शास्त्र में संख्या के सम्यग-विवेक से प्रात्मा का वर्णन है, इसलिए इसे सांख्य-शास्त्र कहते हैं । न्याय के अनुसार दु:ख के अपाय से अर्थात् अासन्न-विमुक्ति से निःश्रेयस की सिद्धि होती है। इसमें उपात्त-जन्म का त्याग और अपर-जन्म का अग्रहण होता है । इस अपर्यन्त अवस्था को अपवर्ग कहते हैं। प्रमाणादि षोडश पदार्थ का तत्वज्ञान मोक्ष का कारण बताया गया है। इन पदार्थों में से प्रमेय पदार्थ का तत्वशान ही माक्ष-लाभ का साक्षात् कारण है । शेष १५, पदार्थों का तत्वज्ञान प्रमेय-तत्वज्ञान का संपादक और रक्षक है। यह तत्वज्ञान मोद-लाम का पारम्पर्येण कारण है । संसार का बीज मिथ्याचान है। इसका उच्छेद करके ही तत्वज्ञान मोक्ष का कारण होता है । अनात्म में श्रात्म-ग्रह मिथ्या-शान है । 'मैं हूँ। इस प्रकार का मोह, अहंकार अर्थात् अनात्मा को ( बेहादि को ) भात्मा के रूप में देखना यह दृष्टिअहंकार है । शरीर,