पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/३१३

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कारणास्तित्ववाद भी सिद्ध नहीं होता । किन्तु हेतु-प्रत्यय का विनाश हो तो हेतु-प्रत्यय से अभिनिवृति या उत्पत्ति नहीं होगी; यथाः-बीज के दग्ध होने से अंकुर की उत्पत्ति नहीं होती । इस प्रकार कर्म-क्रश-प्रत्ययवश उत्पति, उपत्तिवश कर्म-जेश, पुनः अन्य कर्म-क्रय- प्रत्ययवश उत्पनि, इस प्रकार भव-चक्र का अनादित्व सिद्ध होता है। यह स्कन्ध सन्तति तोग मबों में वृद्धि को प्राप्त होती है। यह प्रतीस्य-समुत्पाद है, जिसके बाहर अंग और तीन काण्ड हैं। पूर्वकाण्ड के दो, अपरान्त के दो और मध्य के अाठ अंग हैं। बारह अंग ये है-अविद्या, संस्कार, विज्ञान, नाम-रूप, षडायतन, स्पर्श, वेदना, तृष्णा, उपादान, भव, जाति, जरा-मरण । ये तीन काण्डों में विभक्त है-अविद्या और संस्कार अतीत में, पूर्व-भव में; जाति, और जरा-मरण अपर-भव में; शेष पाठ अंग प्रत्युत्पन्न- भव में। हमारा यह नहीं है कि मध्य के पाठ अंग सब सत्वों के प्रत्युत्पन्न-भव में सदा पाए. जाते हैं। यह 'परिपूरिन्' सत्व के अभिप्राय से है, जो सब अंगभूत अवस्थाओं से होकर गुजरता है। जिसका अकाल-मरण होता है; यथा-जिसका मरण गर्भावस्था में होता है, वह सत्य परिपूरिन्। नहीं है। इसी प्रकार रूपावचर और प्रारूप्याक्चर सत्व भी 'परिपूरिन्: नहा। हम प्रतीत्यसमुत्पाद को दो भागों में विभक्त कर सकते हैं : पूर्वान्त ( अतीत-भव, १-२ अपने फल के साथ, ३-७ ) और अपरान्त ( अनागत-भव के हेतु, ८-१० और अनागत-भव, ११-१२ के साथ )| प्रतीत्य-समुत्पाद की इस कल्पना में जो विविध अंग है, उनका हम वर्णन करते हैं। अविद्या पूर्व-जन्म की लेश-दशा है। अविद्या से केवल अविद्या अभिप्रेत नहीं है, न नेश-समुदाय, 'सर्व-क्लेश' ही अभिप्रेत है । किन्तु पूर्व-जन्म की सन्तति (स्वपंच-स्कन्धों के सहित) अभिप्रेत है; बोलशावस्था में होती है। वस्तुतः सर्व-नेश अविद्या के सहचारी होते हैं और अविद्या-वश उनका समुदाचार होता है; यथा-राजागमन वच्न से उनके अनुयायिनों का अागमन भी सिद्ध होता है। संस्कार पूर्व-जन्म की कर्मावस्था है । पूर्व-भव की सन्तति पुण्य अपुण्यादि कर्म करती है। यह पुण्यादि कर्मावस्था संस्कार है। विज्ञान प्रतिसन्धि-स्कन्ध है । प्रतिसन्धि-क्षण या उपपत्ति-भव-क्षण में कुक्षि गत ५ स्कन्ध विज्ञान है। नाम-रूप विज्ञान-क्षण से लेकर षडायतन की उत्पत्ति तक की अवस्था है। पगपतन सशं के पूर्व के पांच स्कन्ध है। इन्द्रियों के प्रादुर्भाव काल से इन्द्रिय, विषय और विज्ञान के संनिपात काल तक पडायतन है। सर्ग सुख-दुःखादि के कारण-ज्ञान की शक्ति के उत्पन्न होने से पूर्व की अवस्था है। याक्त बालक सुख-दुःखादि को परिच्छिल करने में समर्थ नहीं होता तब तक की अवस्था सर्व कहलाती है।