पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/३२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बौद-धर्म-दर्शन स्पर्श त्रिक-सनिपात नहीं है, किन्तु इस संनिपात का कार्य है, और एक चैतसिक धर्म है । प्रथम पाँच संस्पर्श प्रतिघ-संस्पर्श है, छठा अधिवचन है। चक्षुः-संस्पर्शादि प्रथम पांच के प्राश्रय सप्तविध इन्द्रिय हैं। अतः इनको प्रतिष-संस्पर्श कहते है । मनः-संस्पर्श को अधिवचन-संस्पर्श कहते हैं। अधिवचन नाम है। किन्तु नाम मनोविज्ञान-संप्रयुक्त स्पर्श का बाहुल्येन पालम्बन होता है । वस्तुतः यह उक्क है कि चक्षुर्विज्ञान से वह नील को जानता है, किन्तु वह यह नहीं जानता कि यह नील है । मनोविज्ञान से वह नील को जानता है और यह भी जानता है कि यह नील है । अत: मनोविज्ञान के सर्श को अधिवचन-संस्पर्श कहते हैं ( अधिवचनसंफरस दीघ, २०६२ )। छटा संस्पर्श तीन प्रकार का है-विद्या, अविद्या और इतर-स्पर्श । यह तीन यथाक्रम अमल, बिष्ट, इतर हैं। यह स्पर्श अनासब प्रज्ञा से, निष्ट अशान से, नैवविद्या- नाविद्या से अर्थात् कुशल सासव-प्रज्ञा से अथवा अनिवृतान्याकृत-प्रज्ञा से संप्रयुक्त स्पर्श है । सर्व क्लेश-संप्रयुक्त विद्या-संस्पर्श का प्रदेश नित्य समुदाचारी है। इसके ग्रहण से दो स्पर्श होते हैंव्यापाद-स्पर्श और अनुनय-स्पर्श । समस्त स्पर्श त्रिविध है-सुख-वेदनीय, दुःख-वेदनीय असुखादुःख-वेदनीय । इन सशों की यह संशा इसलिए है, क्योंकि इनका सुख, दुःख, असुम्बा- दुश्व के लिए हितभाव है । जिम स्पर्श में वेद्य मुख होता है, वह सर्श मुख-वेद्य कहलाता है । वस्तुतः वहाँ एक मुवावेदना होती है । वेदना स्पर्श से उत्पन्न होती हैं । पाँच कायिकी वेदना है, एक चैतसिकी है । पाँच वेदनाएँ, जो चतु और अन्य रूपी इन्द्रियों के संपर्श से उत्पन्न होती है, और जिनका श्राश्रय रूपी इन्द्रिय है, कायिकी कहलाती हैं। छठी वेदना मन:-संस्पर्श से उत्पन्न होती है । उसका आश्रय चित्त है । अतः यह चैतसी है । वेदना और स्पर्श महभू हैं; क्योंकि वह सहभू-हेतु हैं । यह वैभाषिक मत है । सौत्रान्तिकों के अनुसार वेदना स्पर्श के उत्तर काल में होती है। यह चैतसी वेदना 'मनोपविचारों के कारण अट्ठारह प्रकार की है, क्योंकि छ: सौमन- स्योपविचार, छः दौर्मनस्य और छः उपेक्षा भी है। रूप, शब्द, गन्ध, रस, स्प्रष्टव्य और छ विषयों के भेद मे छः मौमनस्योपविचार हैं । इसी प्रकार दौर्मनल्य और उपेक्षा' भी छः छः हैं । इन अट्ठारह में कैसे विशेष करते हैं ? यदि हम उनके वेदनाभाव का विचार करें, तो तीन उपविचार होंगे -सौमनस्य, दौर्मनस्य, उपेक्षा । यदि हम उनके संप्रयोगभाव का विचार करें, तो यह एक है, क्योंकि सबका मनोविज्ञान से संप्रयोग है । यदि हम उनके विषय का विचार करें, तो वह छः हैं। क्योंकि रूप-शब्दादि विषय-पटक उनके पालयन हैं । हमको तीन प्रकार से व्यवस्थापन करना चाहिये । जो मनोविज्ञानमात्र संप्रयुक्त एक चैतसी वेदना नाम का द्रव्य है, वह मौमनस्यादि स्वभाव-त्रय के भेद से त्रिविध है और इनमें 1. पालि-ग्रन्थों में छः सोमनामूपविचार, छः दामनम्म्सूरविचार, छ: उपेखूपविकार हैं [ मज्झिम, ३।२१६-२६१ दीघ ३, २४४; विभा, ३८ इत्यादि । यथा-चक्षु से रूपों को देखकर मीमनस्य-स्थानीय रूपों का उपविचार करता है, इत्यादि [ मस्मिमा अहादसमनोपविचारी] |