पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/३५६

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बौर-धर्म-दर्शन अवस्थान्तर में विपाक होता है । अवस्थान्तर की जिस भूमि में उसके कर्म का नियत विषाक है, उस भूमि से उस पुद्गल का अत्यन्त वैराग्य असंभव है। जो कर्म अनियत-विपाक है, वह विपाक नहीं देगा, यदि पुद्गल का उस भूमि से वैराग्य है, जहाँ वह विपच्यमान होगा। निरोध, मैत्री, अरणा, समाधि, सत्यदर्शन, अहत्फल से व्युत्थित पुद्गल के प्रति किया गया उपकार और अपकार सहसा फल देता है। उपपद्य-वेदनीय कर्म i-वह कर्म है, जिसका प्रतिसंवेदन समनन्तर जन्म में होगा। यह प्रानन्तर्य-कर्म है । कोई कर्म, कोई अनुताप, इनके समनन्तर विपाक में श्रावरण नहीं है । गुरुता के क्रम से यह इस प्रकार है :--मातृवध, पितृवध, अर्हत्-वध, संघभेद, दुष्टचित्त से तथागत का लोहितोत्पाद। अानन्तर्य-सभाग ( उपानन्तयं ) सायद्य से भी पुद्गल नरक में अवश्यमेव उत्पन्न होता है । माता का दूषण, अर्हन्ती का दूपण, नियतिस्थ बोधिसत्व का मारण, शैक्ष का मारण, संघ के श्रायद्वार का हरण, स्तूपभेदन, यह पांच श्रानन्तर्य-सभाग सावध हैं । अपरपर्याय-वेदनीय कर्म-वह कर्म है, जो तृतीय जन्म के ऊर्व अपर-जन्म में विपच्य- मान होता है। अनियत-विपाक कर्म-कुछ कमों के विपाक का उल्लंघन हो सकता है । कुछ आचायों के अनुसार कर्म अष्टविध है :-- १. दृष्टधर्म-वेदनीय और नियत-विपाक कर्म; २. दृष्टधर्म-वेदनीय और अनियत-विपाक कर्म; ३. उपपद्य-वेदनीय और नियत-विपाक कर्म; ४. उपपद्य-वेदनीय और अनियत-विपाक कर्म ५. अपरपर्याय-वेदनीय और नियत-विपाक कर्म ६. अपरपर्याय-वेदनीय और अनियत-विपाक कर्म; ७. अनियत या अनियत-वेदनीय किन्तु नियत-विपाक कर्म ८. अनियत-वेदनीय और अनियत- विपाक कर्म । किस कर्म का विषाक प्रथम होता है ? उपपद्य-वेदनीय कर्म का विपाक-काल नियत है। किन्तु सब लोग श्रानन्तर्य कर्म नहीं करते । अपरपर्याय-वेदनीय प्रकार के बहुकर्मों का समुदाचार हो सकता है। प्रश्न है कि वह कौन कर्म है, जो मृत व्यक्ति के समनन्तर जन्म का अवधारण करता है ? समनन्तर जन्म का निश्चय म्रियमाण के चैतसिक धर्मों के अनुसार होता है | भरण- चित्त उपपत्ति-चित्त का श्रासन्न हेतु है । मज्झिम [ JEE ] में है कि मरणकाल में पुद्गल जिस लोक की उपपत्ति में चित्त को अधिष्टित करता है, जिसकी भावना करता है, उसके वह संस्कार इस प्रकार भावित हो उस लोक में उपपत्ति देते हैं। किन्तु नियमाण अपने अन्त्य चित्त का स्वामी नहीं होता । यह चित्त उस कर्म से अभिसंस्कृत होता है, जिमका विषाक सम- नन्तर जन्म में होता है। यदि किसी पाप कर्म का विपाक अपाय गति में होता है तो उसका मरणा-चिच नारक होगा। विविध कर्मों के विपाक का यह क्रम है :- १. गुरु, २० आसन्न, ३० अभ्यस्त । जब मरण-चित्त स-उपादान होता है, तब उसमें नवीन भाव के उत्पादन का सामर्थ्य होता है। इस चित्त के पूर्ववर्ती सर्व प्रकार के अनेक कर्म