पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/३९९

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पचदश अध्याय सर्वास्तिवाद : वैभाषिक नय) अब हम एक एक करके प्रत्येक दर्शन का संक्षिप्त वर्णन करेंगे। हम प्रत्येक दर्शन के एक-दो प्रामाणिक ग्रन्थों के आधार पर मुख्य-मुख्य सिद्धान्तों को संक्षेप में देंगे । हमको यह प्रकार समीचीन मालूम होता है कि मूलग्रन्थों के द्वारा ही किसी दर्शन का शान कराया जाय । सबसे पहले हम सर्वास्तिवाद का विचार करेंगे। इस वाट का बहुत कुछ साहित्य नष्ट हो गया है । सर्वास्तिवाद क अपना श्रागम था और यह संस्कृत में था। इसके भी विनयधर और श्राभिधा- मिक थे। अभिधर्मकोश की व्याख्या में प्राभिधार्मिकों को 'पटपादाभिधर्ममात्रपाठिन ' कहा है। ये सर्वास्तिवादी है, किन्तु यह विभाषा को प्रमाण नहीं मानते। इनको केवल जानप्रस्थान और अन्य छः ग्रन्थ, जो ज्ञानप्रस्थान के छः पाद कहलाते हैं, मान्य है। ये ग्रन्थ इस प्रकार हैं प्रकरण, विज्ञानकाय, धर्मस्कन्ध, प्रतिशास्त्र, धातुकाय और संगीतिपर्याय । ज्ञानप्रस्थान के रचयिता आर्य कात्यायनी-पुत्र है। ज्ञानप्रस्थान एक प्रसिद्ध व्याख्यान है, इसे 'विभाषा कहते हैं। इसको जो प्रमाण मानते हैं, वे वैभाषिक कहलाते हैं । सब सर्वास्तिवादी विभाषा को प्रमाण नहीं मानते । वैभाषिकों का मुख्य केन्द्र काश्मीर था। इनको 'काश्मीर-वैभापिका कहते हैं, किन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि काश्भार के सत्र सोस्तिवादी वैभाषिक थे। सर्वा- स्तिवादी और वैमाधिक दोनों मानते हैं कि अभिधर्म बुद्ध-वचन है । काश्मीर के बाहर को सर्वास्तिवादी थे, उन्हें 'बहिर्देशक', 'पाश्चात्य' ( काश्मीर से पश्चिम के निवासी ) और 'अपरान्तक' कहा है। विभाषा के कुछ प्राचार्यों के नाम ये हैं :-वसुमित्र, घोपक, बुद्धदेव, धर्मत्रात और भदन्त । सर्वास्तिवाद का प्रसिद्ध ग्रन्थ वसुबन्धु-रचित अभिधर्मकोश है, इसका विशेष परिचय हम आठवें अध्याय में दे चुके हैं । इस ग्रन्थ में काश्मीर के वैभाषिको के नय से अभिधर्म का व्याख्यान है। इसका यह अर्थ नहीं है कि वसुबन्धु वैभाषिक हैं। वे सर्वास्तिवादी भी नहीं है। उनका झुकाव सौत्रान्तिकवाद की ओर है, जो अभिधर्म के स्थान में सूत्र को प्रमाण मानता है। यह ग्रन्थ लगभग ६०० कारिकाओं का है। वसुबन्धु ने इन कारिकाओं पर अपना भाष्य लिखा है। इस भाष्य में वसुबन्धु ने जगह जगह पर विभिन श्राचार्यों का मत तथा अपना मत भी दिया है । यह ग्रन्थ बड़े महत्व का है, और बौद्ध संसार पर इसका बड़ा प्रभाव पड़ा है। इसकी अनेक व्याख्याएं हैं, तथा इसका अनुवाद विन्ती और चीनी भाषा में भी हुआ है।