पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/४००

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पौर-धर्म दर्शन वसुबन्धु बाद में महायानवादी हो गए थे, और उन्होंने विज्ञानवाद पर भी अन्य लिखे है। वसुन्धु से हीनयान का उज्ज्वल काल प्रारंभ होता है। बौद्ध-संसार में इनके सब ग्रन्थों का बड़ा आदर है। युवान-वांग ने इनके अन्यों का चीनी भाषा में अनुवाद' किया, और अपनी भाषा में वह सामर्थ्य उत्पन्न किया, जिसके कारण बिना मूल ग्रन्थों की सहायता के ही भारतीय-दर्शन के जटिल और दुरूह माव चीनी भाषा के शाताओं की समझ आ सके। युवान-च्चांग के दो प्रधान शिष्य थे-- 'कुइ-ची' (जापानी 'किकी' ) और 'फुकुभांग' ( जापानी 'फुको)। इन्होंने युवान-वांग के अनुवाद-ग्रन्यों पर व्याख्याएँ की है। 'किकी' वसुबन्धु के महायान-दर्शन और न्याय के प्रचारक हुए, और फुकुनांग ने हीनयान का प्रचार किया। संघभद्र ने न्यायानुसार में वैभाषिक-मत का समर्थन किया है, और सौत्रान्तिकों के श्राक्षेपों का उत्तर दिया है। किन्तु यह ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है। अतः हम वसुबन्धु के ग्रन्थों के आधार पर सर्वास्तिवाद का वर्णन देंगे। सर्वास्तिवाद की माल्या पर विचार इस प्रश्न पर बौद्धों में विवाद होता था कि अतीत और अनामत धर्म द्रव्य-सत् है या नहीं । सर्वास्तिवादियों का मत है कि अतीत और अनागत धर्म द्रव्य-सत् है, क्योंकि ये त्रैयविक धर्मों के अस्तित्व को मानते हैं। इसलिए इन्हें सर्वास्तिवादी कहते हैं ( तदस्तिवादात् सर्वास्तिवादी मतः) । परमार्थ कहते हैं कि यदि कोई कहता है कि अतीत, अनागत, प्रत्युत्पन्न, श्राकाश, प्रतिसंख्या-निरोध, अप्रतिसंख्या-निरोध इन सब का अस्तित्व है, तो उसे सर्वास्तिवादी निकाय का कहते हैं। इसके विपरीत जो वादी अध्य-त्रय के अस्तित्व को तो मानते हैं, किन्तु यह विभाग करते हैं कि प्रत्युत्पन्न धर्मों का, और अतीत कर्मों का अस्तित्व है, यदि उन्होंने अभी फल-प्रदान नहीं किया है। जब वे विपाक-दान कर चुके होते हैं, तब उनका और अनागत धर्मों का-जो अतीत या वर्तमान कर्म के फल नहीं है-अस्तित्व नहीं होता। इन्हें विभज्यवादी कहते हैं। अभिधर्मकोश [५/२५-२७] में इन दोनों वादों के भेद पर विचार किया गया है । वसुबन्धु कहते हैं कि जो प्रत्युत्पन्न और अतीत के एक प्रदेश के, अर्थात् उस फर्म के, जिसने विपाक-दान नहीं किया है, अस्तित्व की प्रतिज्ञा करता है, और अनागत तथा अतीत के उस प्रदेश के अस्तित्व को नहीं मानता, जो दत्त-विपाक कर्मात्मक है; वह विभज्यवादी माना जाता है । पुनः जिसका यह वाद है कि अतीत, प्रत्युत्पन्न, अनागत सबका अस्तित्व है, वह सर्वास्तिवादी माना जाता है । सर्वास्तवादी अागम और युक्ति से अतीत और अनागत १. युमान-वांग के इस चीनी अनुवाद के आधार पर फेंक विद्वान् पुसे ने अपनी महत्वपूर्ण टिप्पणियों के साथ अभिधर्मकोश का अनुवाद प्रकाशित किया था। प्रस्तुत ग्रन्थ के लेखक ने इस संस्करण का अंग्रेजी तथा हिन्दी में अनुवाद किया है। हिन्दी अनुवाद 'हिन्दुस्तानी एकेडमी, प्रयाग' से प्रकाशित हो रहा है।