पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/४०७

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पंचदश अध्याय मायतन, धातु-स्कन्ध-देशना के अतिरिक्त, श्रायतन और धातु व्यवस्था है । आयतन बारह है, धातु अठारह हैं । रूप-स्कन्ध दश श्रायतन, चक्षुरादि पांच, रूपाहि पाँच, दश धातु तथा अविशति है। वेदना', संज्ञा, संस्कार', तथा अविज्ञप्ति और तीन श्रमस्कृत- यह सात वन्तु धर्म-धातु हैं विज्ञान', मन-अायतन है । यह मप्त धातु अर्थात् छः विज्ञान-काय ( विज्ञान-धातु ) और मनोधातु या मन हैं । धातुओं में २२ इन्द्रिय परिगणित हैं, इनका वर्णन हम भागे करेंगे । प्रश्न है कि छः विज्ञान-काय, अर्थात् पाँच इन्द्रिय-विज्ञान और मनोविज्ञान से भिन्न मन या मनोधातु क्या हो सकता है ? उत्तर है कि विज्ञान से भिन्न मन नहीं है। इन छ: विज्ञानों में से, जो विज्ञान अन्तरातीत है, वह मन है । जो बो विज्ञान समनन्तर निरुद्ध होता है, वह वह मनोधानुओं की श्राख्या प्राप्त करता है; यथा वही पुत्र दूमो के पिता की प्राख्या का लाम करता है। पष्ठ विज्ञान-धातु का श्राश्रय प्रसिद्ध करने के लिए भी अठारह धातु गिनात । प्रथम पांच विज्ञान-धातुओं के चक्षुरादि पाँच रूपान्द्रिय प्राश्रय हैं। पाठ विज्ञान, मनो- विज्ञान धातु का ऐसा कोई आश्रय नहीं है । अताव इस विज्ञान-धातु का आश्रय प्रसिद्ध करने के लिए मनोधातु व्यवस्थापित करते है, जो इसका अाश्रय होता है | अर्थान् छ: विज्ञान-धातुओं में से अन्यतम वह मन या मनोधानु अथवा भन-अायतन, मन-इन्द्रिय कहलाता है । इस प्रकार छः श्राश्रय या इन्द्रिय, आश्रय-'पटक पर अाश्रित छः विज्ञान और छः बालंबन विषय के व्यव- स्थान से अठारह धातु होते हैं। सर्व संस्कृत-धर्म स्कन्ध-संग्रह में संग्रहीत हैं। सर्व सासर-धर्म उपादान-स्कन्ध के संग्रह में संगृहीत हैं। सर्व धर्म श्रायतन और धार-संग्रह में संगृहीत हैं । चतु, श्रोत्र और प्राणेन्द्रियों का यद्यपि द्वित्व है, तथापि यह एक क धातु माने जाते हैं, क्योंकि जाति, गोचर और विज्ञान में ये सामान्य है । शोभा के निमित्त इनका द्वित्वभाव है। स्कन्ध, धातु, आयतन का अर्थ-स्कन्ध, धातु और श्रायतन इन अाख्यात्रों का क्या अर्थ है ? 'स्कन्या राशि को कहते हैं । आयतन का अर्थ आय-द्वार, उत्पत्ति-दार है। धातु से प्राशय गोत्र का है। वसुबन्धु के अनुरार स्कन्ध द्रव्य नहीं है, यह प्रशप्ति-सत् है; क्योंकि संचित द्रव्य-सत् नहीं है । यथा-धायराशि, पुद्गल । वैभाषिक इससे सहमत नहीं हैं, क्योंकि उन के अनुसार परमाणु भी स्कन्ध है । वैभाषिक संघभद्र कहते है कि स्कंध का अर्थ राशि नहीं है; किन्तु--"वह नो 'राशिकृत', 'संचित' हो सकता है ।" उसुबन्धु उत्तर देते हैं कि इस विकल्प में जब कि परमाणु का राशिव नहीं है, यह न कहिए कि स्कन्ध का अर्थ राशि है। 'श्रायतन' उन्हें कहते हैं, बो नित्त-चैत्त के प्राय को फैलाते हैं। 'धातु का अर्थ गोत्र है। यथा-वह स्थान जहां लोह, ताम्र, रजत, सुवर्ण धातुओं के बहुगोत्र पाए जाते हैं, 'बहुधातुक' कहलाते है । उसी प्रकार एक अाश्रय या सन्तान में अठारह.प्रकार के गोत्र पाए जाते हैं, जो अठारह धातु कहलाते हैं। धातु स्वजाति के प्राकर हैं। पूर्वोत्पन्न नक्षु चत्तु के पश्चिम क्षणों का सभाग-हेतु है । इसलिए यह चतु का प्राकर-धातु है ।