पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/४०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बौद्ध-धर्म-दर्शन वैभाषिक स्कन्ध, श्रायतन और धातु इन तीनों को द्रव्य-सत् मानते हैं। सौत्रान्तिक धातुओं को द्रव्य-सत् और स्कन्ध तथा प्रायतनों को प्रशस्ति-सत् मानते हैं । वसुबन्धु स्कन्धों को प्रशप्ति-सत् और अायतन तथा धातुओं को द्रव्य-सत् मानते हैं । स्कन्धादित्रय की देशना इसलिए है, क्योंकि आवकों के मोह, इन्द्रिय और रुचि के तीन तीन प्रकार हैं । मोह त्रिविध हैं--एक चित्तों का पिण्डतः ग्रहण कर उन्हीं को श्रात्मतः ग्रहण करते हैं, और इस प्रकार संमूढ़ होते हैं । एक रूप-पिण्ड को ही श्रात्मत: गृहीत कर संमून होते हैं । एक रूप और चित्त का पिंडात्मतः ग्रहण कर समूढ होते हैं । श्रद्धादि इन्द्रिय त्रिविध हैं-तीक्ष्ण, मध्य, मृदु । रुचि भी त्रिविध है--एक की संक्षिप्त रुचि होती है, एक की मध्य, एक की विस्तीर्ण । स्कन्ध-देशना पहले प्रकार के श्रावकों के लिए है, जो चैत्तों के विषय में संम् द होते हैं, जिनकी इन्द्रियाँ तीक्ष्ण हैं, और जिनकी रुचि संक्षिप्त देशना में होती हैं । अायतन- देशना दूसरे प्रकार के लिए है, और धातु-देशना तीसरे प्रकार के लिए है । वेदना, संज्ञा की विवाद भूलता--प्रश्न है कि इसका क्या कारण है कि वेदना और संशा पृथक् पृथक् है, और अन्य सत्र चैन-धर्म संस्कार में संग्रहीत हैं ? क्योंकि यह विवादमूल हेतु है। संसार कारण है । इसलिए और स्कन्धों के क्रम के कारण यह दो चैत्त--वेदना और संज्ञा- पृथक् स्कन्ध व्यवस्थित होते हैं । कामाध्यवसाय और दृष्टि-अभिवंग विवादमूल हैं । वेदना और संज्ञा इन दो मूलों के प्रधान हैं । वेदनास्वादयश कामाभिष्वंग होता है, और विपरीतसंज्ञावश दृष्टियों में अभिष्वंग होता है । जो वेदना-गृध्र है, और जिसकी संज्ञा विपर्यस्त है, वह संसार में जन्म-परंपरा करता है। स्कन्ध-देशना का क्रम- जो कारण स्कन्धों के अनुक्रम को युक्त सिद्ध करते हैं उनका निर्देश करते हैं। प्रोदारिक-भाव, संवेश-भाव, भाजनवादि से तथा अर्थधातुओं की दृष्टि से भी स्कन्धों का क्रम युक्त है । सप्रतिय होने से रूप स्कन्धों में सबसे पौरादिक है । अन्तिम दो स्कन्धों से संज्ञा औरदिक है । विज्ञान सर्वसूक्ष्म है । अतः स्कन्धों का अनुभम क्षीयमाण औरदिकता के क्रम के अनुसार है। अनादि संसार में स्त्री-पुरुष अन्योन्य रूपाभिराम होते हैं; क्योंकि यह वेदनास्वाद में आसक्त हैं। यह श्रासक्ति संज्ञा-विपर्यास से प्रवृत्त होती है । संशा-विपर्यास संस्कारभूत केशों के कारण होता है । और यह चित्त है जो वेशों से संक्लिष्ट होता है । अतः सक्लेश की प्रवृत्ति के अनुसार कोशों का क्रम है । रूप भाजन है, वेदना भोजन है, संज्ञा व्यंजन है, और संस्कार पता है; विज्ञान या चित्त भोक्ता है। धातुतः विचार करने पर हम देखते हैं कि काम-धातु रूप से; अर्थात् पंच काम-गुणों से प्रभावित, प्रकर्पित है । रूप-धातु अर्थात् चार ध्यान, वेदना से प्रभावित है । प्रथम तीन श्रारूप्य-