पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/४१३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पंचाध्याय जाते हैं। प्रश्न है कि यदि परमाणु का अस्तित्व है, तो उसका ग्रहण इन्द्रियों से क्यों नहीं होता ? अापने ही उपपादित किया है कि रूपवत्त्व, स्पर्शवत्व श्रादि ऐन्द्रियकत्व के प्रयोजक है। इसका उत्तर यह है कि उद्भूत-रूप महत् की ही उपलब्धि होती है। उसका ही चाक्षुष, स्पार्शन प्रत्यक्ष होता है क्योंकि वह अनेक द्रव्यवान् है । परमाणु में महत्त्व (परिमाण) का अभाव है, अत: उसका प्रत्यक्ष नहीं होता । सूक्ष्म की उपलब्धि नहीं होती। वायु का महत् परिमाण है, किन्तु उसमें रूप संस्कार का अभाव है। इसलिए उसका प्रत्यक्ष नहीं है । उसमें रूप का उद्भव नहीं है। एक परमाणु में संस्कृत रूप नहीं होता, अत: उसकी उपलब्धि नहीं होती। परमाणुरूप मूल कारण-द्रव्य की परीक्षा कर वैशेषिक कार्यद्रव्य की परीक्षा करता है। उसके अनुसार शरीर पंचात्मक, चातुभौतिक या त्र्यात्मक नहीं है। एक एक द्रव्य का प्रारंभ एक एक से होता है, अतः शरीर पाथित्र है; क्योंकि पृथ्वी का विशेष गुण (गन्ध) मानुप शरीर में विनाश पर्यन्त देखा जाता है। पाकादि की उपलब्धि शुष्क शरीर में नहीं होती, अत: गन्ध स्वाभाविक है, अन्य औपाधिक है । किन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि पाँच भूतों का मिथःसंयोग नहीं होता। यह एक दूसरे के उपभक होते हैं; किन्तु दो विजातीय अणुओं का ऐसा संयोग इष्ट नहीं है, जो द्रव्य के प्रति असमवायिकारण हो। उपरभवश शरीर में पाकादि की उपलब्धि होती है। परमाणु के परिमाण की वैशेषिक संज्ञा 'परिमण्डल' है। प्राचीन यूनान में भी पारिमाण्डल्यवादी परमाणुवादी थे, किन्तु उनके परमाणु गुणविरहित और विविध आकार के थे । उनका संयोग यादृच्छिक था । वैशेषिक अदृष्ट नामक एक धर्म-विशेष मानते हैं । जिसके कारित्र से अणुओं का श्राद्यकर्म, परमाणु-संयोग होता है । काइ टीकाकार ईश्वर के छन्द- विशेष या कालक्रिया के कारण अणुओं का आद्यकर्म मानते हैं । खना--वैभाषिक का परमाणु अविनाशी नहीं है । धातुसंवर्तनी के समय रूपादि के विनाश से परमाणु का विनाश सिद्ध है। वैशेषिक इसके विपरीत मानते हैं कि प्रलयकाल में भी परमाणु-द्रव्य का विनाश नहीं होता। वे कहते हैं कि लोक-धातु का नाश होने पर भी परमाणुओं के नित्य होने से ये अवशिष्ट रहते हैं। अवयव का विभाग विनाश है, इसी से द्रव्य का नाश होता है । यह निरवयव का नाश नहीं है। वैभाषिक के अनुसार परमाणु रूप का पर्यन्त है, इसकी उपलब्धि नहीं होती, यह अनिदर्शन है । सात परमाणुओं का एक अणु होता है। सात अणुओं का एक लोहरज, सात लोहरन का एक अनन, सात अनब का एक शशरज, सात शशरज का एक अविरज, सात अविरज का एक गोरज, सात गोरज का एक छिद्ररज (वैशेषिकों का त्रसरेणु) होता है। वैशेषिकों का परमाणु त्रसरेणु का षष्ठांश है। दो अणुओं का एक घणुक, तीन दूषणुकों का एक व्यणुक होता है, इत्यादि।