पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/४१९

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पंचदश अध्याय दर्शनमार्गस्थ आर्य अनाशात अर्थात् सत्य-चतुष्टय के जानने में प्रवृत्त होता है (अनागतमाशातुं प्रवृत्तः)। मैं जान गा' ऐसा वह विचार करता है, अतः उसकी इन्द्रिय 'अनाशात कहलाती है। भावनामार्गस्थ ार्य के लिए कोई अपूर्व नहीं है, जिसे उसे जानना हो। वह श्राश है । किन्तु शेष अनुशयों के प्रहाण के लिए वह अज्ञात सत्यों को पौनःपुन्येन जानता है । उसकी इन्द्रिय प्राज्ञेन्द्रिय कहलाती है। अशैक्षमार्गस्थ योगी को यह अवगम होता है कि वह जानता है । इसको इसका अवगम (= प्राव ) होता है कि सत्य आज्ञात है। जिसको श्राज्ञाताव है, वह अाज्ञातावी है। इन्द्रिय-स्वभाव-हमने इन्द्रियों के विशेष लक्षणों का निर्देश किया है । अब हम उनके भिन स्वभाव को बताते हैं । अन्तिम तीन इन्द्रिय एकान्त अमल हैं। सात रूपी इन्द्रिय ( चक्षुरादि पाँच इन्द्रिय और स्त्री-पुरुषेन्द्रिय ), जीवितेन्द्रिय, दुःखेन्द्रिय और दौमन- स्येन्द्रिय एकान्त सास्तव हैं। मन, सुखेन्द्रिय, सौमनस्येन्द्रिय, उपेक्षेन्द्रिय तथा श्रद्धादि पंचक सासव अनार दोनों हो सकते हैं। कुछ प्राचार्य श्रद्धादि पंचक को एकान्त अनामा मानते हैं। विपाक अविपाक-इन्द्रियों में कितने विपाक है ? कितने विपाक नहीं हैं ? जीवितेन्द्रिय सदा विपाक है । श्रद्धादि पंचक, तीन अनासव इन्द्रिय और दौमनस्य अविपाक है। शेष बारह कभी विपाक है, और कभी अविपाक हैं । यह सात रूपी इन्द्रिय, मन-इन्द्रिय और दौर्मनस्य से अन्यत्र चार वेदनेन्द्रिय है । सात रूपी इन्द्रिय विपाक नहीं है, क्योंकि वे औपचारिक हैं । अन्य अविपाक है । मन-इन्द्रिय और चार वेदनेन्द्रिय अविपाक है, यदि वे कुशलक्लिष्ट होते है, क्योंकि विपाक अव्याकृत है, यदि वे यथायोग्य ऐपिथिकादि होते हैं; शेष विपाक हैं। कुशल-अकुशल-२२ इन्द्रियों में कितने कुशल, कितने अकुशल, कितने अव्याकृत हैं ? श्राट कुशल हैं । ये श्रद्धादि-पंचक और तीन अनासव हैं । दौमनस्य' कुशल-अकुशल है। जब कुशल न करके संताप होता है, बव अकुशल करके संताप होता है, तब यह कुशल है । मन-इन्द्रिय और चार वेदना कुशल, अकुशल, अव्याकृत हैं। चतुरादि पांच इन्द्रिय, बीवितेन्द्रिय, पुरुषेन्द्रिय-स्त्रीन्द्रिय अव्याकृत हैं । इन्द्रियों का धातु-विभाग-२२ इन्द्रियों में से कौन-कौन किस धातु के हैं ? काम-धातु में अमल इन्द्रियों का अभाव है | रूप-धातु में इनके अतिरिक्त स्त्री-पुरुषेन्द्रिय और दो दुःखावेदना ( दुःख-दौमनस्य ) का भी यभाव है । श्रारूप्य-धातु में इनके अतिरिक्त रूपी-इन्द्रिय और दो सुखावेदना ( सुख-सौमनस्य ) का भी अभाव है। तीन अनासव इन्द्रियों को वर्जित कर शेष सब इन्द्रिय कामाप्त हैं। यह तीन अधातु-पतित हैं। हेय-अहेम विभाग-२२ इन्द्रियों में कितने दर्शन-हेय हैं ? कितने भावना-हेय है । कितने अहेय है।