पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/४२८

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बौद-वादन उपाय केशों के अवस्थाविशेष हैं, या नेश-निष्यन्द हैं। १-१०, १८, २०, १७ अवस्था-विशेष है, शेष वेध-निष्यन्द हैं । क्लेश उपक्लेश के समीपवर्ती हैं। इन बीस को तीन प्रकार में विभक्क कर सकते हैं: १. परीत्तोपक्केश-क्रोधादि १-२०१२. मध्योपझेश-श्राहीक्य और अनपत्राप्य । ये सर्व अकुशल चित्त में पाए जाते हैं। ३. महोपक्लेश-शेष पाठ जो सर्व लिष्ट चित्त में पाए जाते हैं। सर्वास्तिवाद के दश परीत-क्लेशभूमिक भी यही हैं। दो अकुशल यहां मध्योपक्लेश है। छ: क्लेश-महाभूमिकों में से ज्यान, श्रौद्धस्य, श्राश्रय, कौसीद्य, प्रमाद, महोपफ्लेश हैं; और मोह मूल क्लेश हैं। विशानवाद की महो- पक्कयों की सूची में भूषिता-स्मृति, विक्षेप और असंप्रजन्य विशेष है । तीन मूल अभिधर्म की क्लेश-महाभूमिक सूची में पठित हैं। इन सचियों की तुलना से प्रकट होता है कि सर्वास्तिवादियों के विभाग में 'मूल' क्रश नहीं है, और जिसे वह क्लेश कहते हैं, वे मोह को वर्जितकर विज्ञानवाद के महोपक्लेश है । 1.क्रोष व्यापाद-विहिंसा से अन्य सत्व-असत्व का श्राघात है। यथा-कंटकादि में प्रकोप, शिक्षा-काम मिद्ध का चित्त-प्रकोप [ कोश ५, पृ. ६.] । २. अपवाद वैरानुबन्ध है। ३. क्ष-लाभ-सत्कार के खोने के भय से अपने कृत्य को छिपाना, चोदक से पूछे माने पर पापकर्म को आविष्कृत न करना। १. प्रवास--चपड-पारुष्य है, जो मर्म का घात करता है। ५.ईया-पर सम्पचि का असहन है। ..मात्सर्ग-धर्म-दान श्रामिष-दान का विरोधी है। ७. या चित्त की कुटिलता है, जो स्वदोष का प्रच्छादन करती है। शाख्य म्रक्ष से भिन्न है । शाध्य में प्रच्छादन परिस्ट नहीं होता। कमाया कुटिलता है। १.विहिंसा-विहेठना है। १०. मद-राग-निष्यन्द है। वह अपने रूपादि में रक्त का वर्ष है। १. स्वान-चित्त की अकर्मण्यता है । इसके योग से चित्त बड़ीभूत होता है। १२. सीय-पालस्य है। १६ अपितस्पतिवा--निष्ट स्मृति है। १७. संप्रम्प-उपपरीक्ष्य वस्तु में विपरीत बुद्धि है । यह क्लेश-संप्रयुक्त प्रया है। भनिपत सिक चैत्तों के पांच प्रकार हमने वर्णित किए है। अन्य भी चैत्त है, जो अनियत है, जो कभी कुशल, कभी अकुशल या अव्याकृत चित्त में होते हैं । ये कौकत्य, मिड, वितर्फ, विचार आदि है। यशोमित्र की व्याख्या में कहा है कि रागादि नेश भी अनियत है, क्योंकि