पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/४४०

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बौद्ध-धर्म-दर्शन जीवित त्रैधादक श्रायु है। यह एक पृथक् धर्म है । यह उष्म और विज्ञान का श्राधार है । यह सन्तान की स्थिति का हेतु है। सौत्रान्तिक आयु को द्रव्य नहीं मानते । उनका कहना है कि यह एक आवेध सामथ्र्य- विशेष है जिसे पूर्वजन्म का कर्म प्रतिसन्धि-क्षण में सत्र में श्राहित करता है। इस सामर्थ्य-वश एक नियत काल के लिए निकाय-सभाग के स्कन्ध-प्रबन्ध का अवस्थान होता है । माम, पद, जन-काय 'नाम' (नाम या शब्द) से 'संशाकरण समझना चाहिये । यथा रूप, शम्द, गन्धादि शब्द । 'पद' से वाक्य का अर्थ लेते हैं, जितने से श्रर्य की परिसमाप्ति होती है, यथा यह वाश्य :-संस्कार अनित्य है, एवमादि । अथवा पद वह है, जिससे क्रिया, गुण, काल के संबन्ध-विशेष भासित होते है, यथा-वह पकाता है, वह पढ़ता है, वह बाता है, वह कृष्ण है, गौर है, रक्त है; वह पकाता है, वह पकावेगा, उसने पकाया । 'भ्यंजन' का अर्थ अक्षर, वर्ण, स्वर-व्यंजन है । यथा अ आ इ ई श्रादि । 'काय' का अर्थ समुदाय है। सौत्रान्तिक का मतभेद-सौत्रान्तिक दोष दिखाते हैं कि यह वारस्वभाव है, और इसलिए 'शब्द' है । अतः यह रूप-स्कन्ध में संग्रहीत हैं । चित्त-विप्रयुक्त संस्कार नहीं है । सर्वास्तिबादी के मत में यह वारस्वभाव नहीं है। वाक् घोप है । और धोषमात्र से यथा क्रन्दन से अर्थ अवगत नहीं होता । किन्तु वाक् नाम में प्रवृत्त होता है। यह नाम अर्थ को द्योतित करता है, प्रतीति उत्पन्न करता है। सौत्रान्तिक-जिसे मैं वाक् कहता हूँ, वह घोषमात्र नहीं है । किन्तु यह वह घोष है, जिसके संबन्ध में वक्ताओं में संकेत है कि यह अमुक अर्थ की प्रतीति करेगा। जो सिद्धान्त यह मानता है कि नाम पदार्थ का द्योतक है, उसे यह मानना पड़ेगा कि 'गो' शब्द के ये भित्र अर्थ संवृति से है। अतः यदि अमुक नाम से श्रोता को अमुक अर्थ द्योतित होता है, तो यह घोषमात्र है, जो उसकी प्रतीति कराता है । 'नामा द्रव्य की कल्पना का कोई प्रयोजन नहीं है। सौत्रान्तिक व्यवस्थित करते हैं कि 'नाम' एक शब्द है, जिसके संबन्ध में मनुष्यों में संकेत है कि यह एक अर्थ विशेष को प्रतीति करता है। वैभाषिक इन्हें द्रव्य के रूप में स्वीकार करते हैं। वे कहते हैं कि सब धर्म तकंगम्य नहीं हैं। पाय-वैशेषिक से सुखना वैशेषिक-शास्त्र में 'गुण' एक पदार्थ है। यह कई प्रकार का है। यह द्रव्याभयी है, स्वयं गुणविशिष्ट नहीं है, और दूसरे की अपेक्षा के बिना संयोग और विभाग के उत्पादन में असमर्थ है । संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, संस्कारादि गुण हैं।