पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/४४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बौ-मा-दर्शन न्यापभाष्य [१८] में किसी दर्शनकार के मत से 'अदृष्ट परमाणुओं का गुण- विशेष है। यह अदृष्ट परमाणु-क्रिया का हेतु है। इस अदृष्ट से प्रेरित परमाणु-समूह परस्पर संयुक्त हो शरीर का उत्पादन करता है। इसी अदृष्ट से मन की क्रिया उत्पन्न होती है । मन अपने पहष्ट से प्रेरित हो उस शरीर में प्रवेश करता है। तब समनस्क शरीर में द्रष्टा सुख-दुःख की उपलब्धि करता है। हेतु फल-प्रत्ययता का वाद सर्व धर्म जो उत्पन्न होते है, पांच हेतुओं से और चार प्रत्ययों से उत्पन्न होते है। रकर, पुरुष, प्रधानादिक एक कारण से नगत् की प्रवृत्ति नहीं होती। अन्य धर्मों को जनित परने के लिए जाति, हेतु और प्रत्ययों के सामग्रथ की अपेक्षा रहती है । यह हेतु-प्रत्यय क्या है। प्रत्यय चार है:--हेतु-प्रत्यय, समनन्तर-प्रत्यय, श्रालंबन-प्रत्यय, प्राषिपति-प्रत्यय । हेतु षविध है:-कारण-हेतु, सहभ-हेतु, सभाग-हेतु, संप्रयुक्तक-हेतु, सर्वत्रा- देव, विपाक-हेतु। पहले हम प्रत्ययता का विचार करेंगे। स्थविरवाद में छः हेतु, पाँच फल का उल्लेख नहीं है। विभाषा [१६] में उक्त है कि यह सत्य है कि ये छ हेतु सूत्र में उक्त नहीं है। सूत्र में केवल इतना उक्त है कि चार प्रत्ययता (प्रत्यय-प्रकार ) है । जो धर्म जिस धर्म की उत्पत्ति या स्थिति में उपकारक होता है, वह उसका प्रत्यय कहलाता है। प्रत्यय, हेतु, कारण, निदान, संभव, प्रभव श्रादि का एक ही 1.हेतु-प्रत्यय---मूल का अधिवचन है। जो हेतुभाव से उपकारक धर्म है, वह हेतु- प्रत्यय है, जब एक धर्म दूसरे का प्रत्यक्ष हेतु होता , तो वह हेतु-प्रत्यय होता है । कारण-हेतु को वर्बित कर शेष पांच हेतु हेतु-प्रत्यय है। यथा-- शालि-बाज शालि का हेतु-प्रत्यय है, कुश- लादि माव साधक कुशलादि का। हेतु ओर प्रत्यय के परस्पर के संबन्ध में विभाषा के प्रथम प्राचार्य कहते हैं-१. हेतु-प्रत्यय में कारण-हेतु को वर्जित कर पांच हेतु संगृहीत है। २. कारया-हेतु में अन्य तीन प्रत्यय संग्रहीत है। द्वितीय श्राचार्य कहते है.-१. हेतु-प्रत्यय में पांच हेतु संग्रहीत है। २. कारण-हेतु केवल अधिपति-प्रत्यय के अनुरूप है । इस सिद्धान्त को वसुन्धु स्वीकार करते हैं। महायान के प्राचार्यों के लिए, सभाग-हेतु हेतु-प्रत्यय और अधिपति दोनों है, अन्य पांच हेतु अधिपति-प्रत्यय हैं। १. समनन्तर-प्रधए-अहत के निर्वाण काल के चरम चित्त और चैत्त को वर्मित कर अन्य सब उत्पन्न चित्त-चैत्त समनन्तर-प्रत्यय है। यह प्रत्यय समनन्तर कहलाता है, क्योंकि यह सम और अनन्तर धर्मों का उयाद करता है। केवल वित्त-चैत्त समनन्तर है, क्योंकि अन्य धों के लिए, यथा-पी धर्मों के लिए,हेतु और फल में समता नहीं है । चित्त-नियम पूर्व-पूर्व चित्त के कारण समृद्ध होता है, अन्यथा नहीं। एलिए एक दूसरे के अनन्तर अनुरूप चित्ती-