पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/४४८

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बौद्ध-अनदान बह परिणाम निकलता है कि सहभ-हेतु आदि धर्म भी कारण-हेतु हैं। अन्य हेतु कारण हेतु के अन्तर्गत है। जिस हेतु का कोई विशेष नाम नहीं है, जो बिना किसी विशेषण के कारणमात्र है, वह कारण-हेतु है। एक विशेष नाम के योग से यह वह नाम पाता है, वो सब हेतुत्रों के उपयुक्त है। कारणोतु का निर्देश हमने किया है। वह सामान्य निर्देश है, और उसमें प्रधान कारय-हेतु तथा अप्रधान कारण हेतु दोनों संगृहीत है। प्रधान कारण-हेतु जनक है। इस अर्थ में चक्षु और रूप चक्षुर्विज्ञान के कारण-हेनु हैं, यथा-श्राहार शरीर का कारण-हेतु है, बीचादि अंकुरादि के कारण-हेतु है। निर्वाण भी कारण-हेतु हो सकता है। एक मनोविज्ञान उत्पन्न होता है, निर्वाण उसका श्रालंबन है, पश्चात् इस मनोविज्ञान से एक चतुर्विज्ञान उत्पन्न होता अतः चतुर्विज्ञान के प्रति निर्वाण का परम्परया सामर्थ्य है । २. सामू-जो धर्म परस्पर पुरुषकार-फल [ २५८ ] हैं, वे सहभ-हेतु कहलाते हैं। यह नहीं कहते कि सब सहभू-धर्म सहभ-हेतु हैं। यथा-नीलादि भौतिक रूप महाभूतों का सहभू है, किन्तु यह उनका सहभू हेतु नहीं है। यथा-महाभूत अन्योन्य के सहभू-हेतु है, यथा—चित्त और चित्तानुवर्ती, यथा- जाति आदि लक्षण और वह धर्म जो उनका लक्ष्य है। सब संस्कृत धर्म यथायोग सहभ-हेतु हैं। जिन धर्मों का अन्योन्यफलत्व है, उन्हीं का सहभू हेतुत्व है । सव संस्कृत धर्म और उसके लक्षण एक दूसरे के सहभू-हेतु है, किन्तु एक धर्म अन्य धर्म के लक्षणों का सहभू-हेतु नहीं है।' पूर्व लक्षण सावशेष है । एक धर्म अपने अनुलक्षणों का सहभू-हेतु है, किन्तु इसका उनके साथ अन्योन्य-फल-संबन्ध नहीं है, क्योंकि अनुलक्षण अपने धर्म के सहभू-हेतु नहीं है । चित्तानुपरिवर्ती कौन हैं। सब चित्त-संप्रयुक्त धर्म, ध्यान-संवर और अनासव-संवर, इन सबके और चित्त के जास्यादिलक्षण चित्तानुपरिवर्ती हैं । अनुवर्ती चित्त से कालतः संप्रयुक्त है, चित्त के साथ इनका एकोत्पाद, एक स्थिति, एक निरोध है, यह और चित्त एक अभ्व में पतित हैं। अनुवर्ती के उत्पाद, स्थिति, और निरोध का काल वही है, जो चित्त का है । किन्तु उनकी उत्पत्ति पृथक् है । अनुवर्ती चित्त से फलादिता संप्रयुक्त हैं। यहाँ फल पुरुषकार-फल और विसंयोग-फल है। 'श्रादि से विषाक-फल और निष्यन्द-फल का ग्रहण होता है। एक फल, एक विपाक, एक निष्यन्द से वह चित्त का अनुपरिवर्तन करते हैं। अनुवर्ती चित्त से शुमादितः संप्रयुक्त है। जिस चित्त का वह अनुपरिवर्तन करते हैं, उठी के सहश कुशल, अकुशल, श्रव्याकृत होते हैं। साल्पचित्त ५८ धर्मों का सहम-हेतु है, अर्थात्-.--१. दश महाभूमिक और प्रत्येक के चार चार लक्षण, २. चार वलक्षण और चार अनुलक्षण।