पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/४४९

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पंचदश अध्याय यदि इन ५८ धर्मों में से चित्त के चार अनुलक्षणों को वर्जित कर ६, विनका इस चित्त में कोई व्यापार नहीं है, तो ५४ धर्म शेष रहते हैं, जो उक्त चित्र के सहभू हेतु होते हैं। प्रत्येक धर्म जो सहभू-हेतु से हेतु है, सहभू है। किन्तु ऐसे सहभू है, वो सहम् हेतु नहीं हैं। धर्म के अनुलक्षण इस धर्म के सह हेतु नहीं है । २, यह अनुलक्षण अन्योन्य के सह -हेतु नहीं हैं। ३. चित्तानुपरिवर्ती के अनुलक्षण चित्त के सहभू-हेतु नहीं हैं। ४. यह अन्योन्य के सहभु-हेतु नहीं है । ५. नीलादि भौतिक रूप जो सप्रतिष और सहज है, अन्योन्य के सदभूतु नहीं है। ६. अप्रतिष और सहज उपादाय रूप का एक भाग परस्पर सहभू-हेतु नहीं है। दो संघरों को वर्जित करना चाहिये। ७. सर्व उपादाय-रूप यद्यपि भूतों के साथ उत्पन्न हुश्रा हो, भूतों का सह हेतु नहीं है। ८. प्रतिमान् धर्म के साथ सहोत्याद होने पर भी सहज प्राप्ति उसका सहभूत नहीं होती। यह पाठ प्रकार के धर्म सहभू हैं, किन्त महमू-हेतु नहीं हैं । सहसू-हेतुत्व पर सौत्रान्तिक मत-भेद-सौत्रान्तिक सहभू-हेतुत्व की आलोचना करते हैं। वह कहते हैं कि लोक में कुछ का हेतु-फल-भाव सदा सुव्यवस्थापित है, हेन फल का पूर्ववर्ती है, इसलिए बीज अंकुर का हेतु है, अंकुर काण्ड का हेतु है, "इत्यादि । किन्तु महोत्पन्न अर्थों में यह न्याय नहीं देखा जाता । अतः आप को सिद्ध करना होगा कि सहभू धर्मों का हेतु-फल-भाव होता है। सर्वास्तिवादी अपने मत के समर्थन में दो दृष्टान्त देते हैं। प्रदीप सप्रम उत्पन्न होता है, अातप में उत्पद्यमान अंकुर सच्छाय उत्पन्न होता है। किन्तु प्रदीप सहोत्पन्न-प्रभा का हेतु है, अंकुर छाया का हेतु है। अता हेर-फल सहोत्पन्न है। सौत्रान्तिक कहते हैं कि यह दृष्टान्त श्रसिद्ध है। इसका संप्रधारण होना चाहिये कि प्रदीप सहोत्पन्न प्रभा का हेतु है, अथवा जैसा कि हमारा मत है, वर्तिस्नेहादिक पूर्वोत्पन्न हेतु-प्रत्यय-सामग्री सप्रभ प्रदीप की उत्पत्ति में हेतु है, यथा--पूर्गत्पन्न हेतु-सामग्री ( वीच श्रात- पादि ) अंकुर और छाया की उत्पत्ति में, सच्छाय अंकुर की उत्पत्ति में हेतु है। सर्वास्तिवादी-हेतु-फल-भाव इस प्रकार व्यवस्थापित होता है। हेतु का भाव होने पर फल का भाव होता है। हेतु का अभाव होने पर फल का अभाव होता है । हेतुविद् का लक्षण सुन्छु है । जब 'क' के भाव-प्रभाव से 'ख' का भाव-श्रभाव नियमतः होता है, तब क' व है, 'ख' हेतुमान् है । इस प्रकार यदि हम सहभू-धर्म और सहभहेतु-धर्म का संधारण