पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/४५५

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पंचदश अध्याय प्रतिसंख्या को पुरुषकार-फल अवधारित करते हैं, किन्तु इस फल के लक्षण निरोध में नहीं घटते, क्योंकि नित्य होने से वह उत्पन्न नहीं होता। अतः हम कहते है कि यह उस धर्म का पुरुषकार-फल है, जिसके बज़ से प्रतिसंख्या प्राप्त होती है। पूर्वोत्यम से अन्य सर्व संस्कृत धर्म संस्कृत धर्मों का अधिपति-फल है । कर्ता का पुरुषकार-फल है । अधिपति-फल कर्ता और अकर्ता दोनों का है। यह दोनों में विशेष है । यथा-शिल्पकारक शिल्पी का पुरुषकार और अधिपति है । अशिल्पी का यह केवल अधिपति-फल है। पांच हेतु वर्तमान अवस्था में फल-ग्रहण करते हैं। दो वर्तमान अवस्था में फल-प्रदान करते हैं । दो वर्तमान और अतीत प्रदान करते हैं। एक अतीत प्रदान करता है । एक धर्म फल का प्रतिग्रहण करता है,जब यह बीजभाव को उपगत होता है । एक धर्म फल का दान उस काल में करता है, जब वह इस फल को उत्पन्न होने का सामर्थ्य प्रदान करता है, अर्थात् जिस क्षण में उत्पादाभिमुरण अनागत फल को यह धर्म वह बल देता है, जिससे वह वर्तमानावस्था में प्रवेश करता है। पांच हेतु वर्तमान होकर अपने फल का प्रतिग्रहण करते हैं। कारण-हेतु का उल्लेख नहीं है, क्योंकि यह हेतु अवश्यमेव सफल नहीं है । दो हेतु वर्तमान होकर अपना फल प्रदान करते हैं । वर्तमान सहभू-हेतु और संप्रयुक्तक ही फल प्रदान करते हैं । वस्तुतः यह दो हेतु एक काल में फल का प्रतिग्रहण और दान करते हैं। दो हेतु-~~सभाग और सर्वत्रग--वर्तमान और अतीत अवस्था में फल-प्रदान करते हैं। वर्तमानावस्था में वह कैसे निष्यन्द-फल प्रदान करते हैं । हम ऊपर कह चुके हैं कि यह हेतु अपने फल से पूर्व होते हैं। ऐसा इसलिए, कहते हैं, क्योंकि वह फल का समनन्तर निर्वर्तन करते हैं । जब उनके फल को निर्वृति होती है, तब वह अभ्यतीत होते हैं। वह पूर्व ही फल- प्रदान कर चुके हैं । वह पुन: उसी फल को नहीं देते। हम पांच फलों का विचार कर चुके हैं। पाश्चात्य आचार्यों के अन्य चार फल - पाश्चात्य श्राचार्य कहते हैं कि पूर्वोक पाँच फलों से भिन्न चार फल है। 1. प्रविष्टा-फल-जलमण्डल वायुमण्डल का प्रतिष्ठा फल है। और एवमादि यावत् औषधिप्रभृति महा पृथिवी का प्रतिष्ठा-फल है । १. प्रयोग-का-अनुत्पादनानादि अशुभादि का प्रयोग-फल है। ३. सामग्री-फरा-चक्षुर्विज्ञान चतु, रूप, आलोक और मनस्कार का सामग्री-फल है । ५. मावषा-ब-निर्माण चित्त ध्यान का भावना-फल है। सर्वास्तिवादी के अनुसार इन चारों फलों में से प्रथम अधिपति-फल में अन्तर्भूत है। अन्य तीन पुरुषकार-फल में संग्रहीत है।