पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/४६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

JUE बौद्ध धर्म-दर्शन होगा । फिर इस कल्पना से क्या लाम कि अन्य अतीतादि कारिन पर माश्रित है। क्या आप यह कहेंगे कि कारित्र न अतीत है, न अनागत, न प्रत्युत्पन्न ! उस अवस्था में प्रसंस्कृत होने से यह नित्य है । अतः यह न कहिए कि जब धर्म कारित्र नहीं करता, तब वह अनागत है; और बब इसका कारित्र उपरत हो जाता है, तब यह अतीत है। सर्वास्तिवादी उत्तर देता है कि यदि कारित्र धर्म से अन्य होता तो यह दोष होता। सौत्रान्तिक--किन्तु यदि यह धर्म से अन्य नहीं है, तो श्रध्वयुक्त नहीं है । यदि कारित्र धर्म का स्वभाव ही है, तो धर्म के नित्य होने से कारित्र भी नित्य होगा। स्यों और कैसे कभी कहते हैं कि अनागत है । अध्व-भेद युक्त नहीं है । सर्वास्तिवादी उत्तर देता है :-किसमें इसकी अयुक्तता है। वास्तव में अनुत्पन्न संस्कृत धर्म अनागत कहलाता है, जो उत्पद्यमान हो निरुद्ध नहीं हुआ, वह प्रत्युत्पन्न कहलाता है; जो निरुद्ध होता है, वह अतीत कहलाता है । सौत्रान्तिक-प्रत्युत्पन्न का जो स्वभाव है, यदि उसी स्वभाव के साथ ( तेनैवात्मना) अतीत और अनागत धर्म का सद्भाव होता है, तो वैसे ही होते हुए यह कैसे अनुत्पन्न या नष्ट होता है ? जब इस धर्म का स्वभाव वैसा ही रहता है, तो यह धर्म अनुत्पन्न या नष्ट कैसे होगा १ पूर्व इसके क्या न था, जिसके प्रभाव में इसे अनुत्पन्न कहेंगे १ पश्चात् इसके क्या नहीं है, जिसके अभाव में इसे निरुद्ध कहेंगे १ अतः यदि 'अभूत्या भाव' इष्ट नहीं है, यदि 'भूत्वा अभावा भी इष्ट नहीं है, तो अध्व-त्रय सिद्ध नहीं होता। इसके बाद सौत्रान्तिक सर्वास्तिवादी की युक्तियों की परीक्षा करते हैं। यह युक्ति कि संस्कृत लक्षण के योग से संस्कृतों का शाश्वतत्व प्रसंग नहीं होता, यद्यपि उनका अतीत और अनागत दोनों में सद्भाव है-वाङमात्र है; क्योंकि भर्म का सर्वकाला- स्तित्व होने से धर्म के उत्पाद और विनाश का योग नहीं है । "धर्म नित्य है और धर्म नित्य नहीं है ।" यह वचन पूर्वापरविरुद्ध है। इस युक्ति के संबन्ध में कि भगवान् ने अतीत और अनागत के अस्तित्व का उपदेश दिया है, क्योंकि भगवान् का वचन है कि-"अतीत कर्म है, अनागत विपाक है। हमारा कहना है कि हम भी मानते हैं कि अतीत है, अनागत है (अनीति)। जो भूतपूर्व है ( यद् भूतपूर्वम् ) वह अतीत है; जो हेतु होने पर होगा ( यद् भविष्यति), वह अनागत है । इस अर्थ में हम कहते हैं कि अतीत है, अनागत है। किन्तु प्रत्युत्पन्न के समान वह द्रव्यतः नहीं है। सर्वास्तिवादी विरोध करता है:-कौन कहता है कि प्रत्युत्पन्न के सदृश उनका सद्भाव है। सौत्रान्तिक-- यदि उनका सद्भाव प्रत्युत्पन्न के सहश नहीं है, तो उनका सद्भाव कैसे है। सर्वास्तिवादी-वह अतीत और अनागत के स्वभाव के साथ होते है।