पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/४७१

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पोश अध्याच ३८३ यदि यह द्रव्यान्तर नहीं है, तो आप यह कैसे कहते है कि ये चैतसिक धर्म ।। चित्त के अवस्था-विशेष चैतसिक कहलाते हैं, क्योंकि वे चित्त में होते हैं। सौत्रान्तिक कहते हैं कि जब वितर्क और विचार का विशेष समास हो जाता है, तब चित्त-सन्तति प्रशान्त, प्रसन्न नहीं होती [ अभिधर्मकोश, ८। पृ० १५१-१५६ ] । दार्टीन्तिकों के अनुसार सामन्तक केवल शुभ होते हैं, किन्तु वैभाधिकों के अनुसार वे शुभ, क्लिष्ट और अव्याकृत होते हैं [अमिधर्म- कोश, पृ० १८०]। वैभाषिक-नय से पर्ययस्थान ही अनुशय है; वात्सोपुत्रीय नय से 'प्राप्ति अनुशय है; सौत्रान्तिक-नय से बीज अनुशय है [ व्याख्या, पृ. ४४२, पंक्ति २८-२६] । विज्ञान का पाश्रम और विषय-वैभाषिक का मत है कि चक्षु रूप देखता है, जब वह सभाग है । यह तदाश्रित विज्ञान नहीं है, जो देखता है [ अभिधर्मकोश, १॥ पृष्ठ २२] । विज्ञानवादी के अनुसार चन्न नहीं देखता, चक्षुर्विज्ञान देखता है । सौत्रान्तिक का मत है कि न कोई इन्द्रिय है, जो देखती है न कोई रूप है, जो देखा जाता है; न कोई दर्शन-क्रिया है, न कोई कर्ता है, जो देखता है; हेतु-फल-मात्र है [ अभिधर्मकोश, ११ पृ० ८६] । महापान के उदय की ओर-सौत्रान्तिकों का यह विचार महायान दर्शन के विचार से मिलता-जुलता है। हम ऊपर देख चुके हैं कि सर्वास्तिवाद के कई धर्म सौत्रान्तिक के लिए, वस्तु-सत् नहीं हैं, वे प्रप्तिमात्र हैं। यहां तक कि निर्वाण भी वस्तु-सत् नहीं है। पुनः सौत्रान्तिक का क्षणिकवाद सर्वास्तिवाद के क्षणिकवाद से भिन्न है। सौत्रान्तिक के लिए, अामा संस्कार-प्रबन्ध अथवा विज्ञान-मन्तान है । यह सन्तान सन्तानी के बिना है। यह सन्तान पिपीलिका-पंक्ति के तुल्य है। यह हेतु-फल-परंपरा है। धर्मों के उत्पाद और निरोध को हम एक दूसरे से पृथक नहीं कर सकते; कोई स्थिति नहीं है। सर्वास्तिवाद के अनुसार धर्मों का उत्पाद, स्थिति, अनित्यता और निरोध है । सर्वास्तिवादी भी क्षणिकवादी है, किन्तु उसका क्षणकाल का अल्पतम विभाग है। किन्तु सौत्रान्तिक के अनुसार धर्मों का विनाश, उत्पाद के समनन्तर ही होता है, धर्मों की कोई स्थिति नहीं है । पुनः सौत्रान्तिक के अनुसार बाब अर्य- जात का प्रत्यक्ष नहीं है, वह केवल अनुमित होता है । सौत्रान्तिक धर्म-काय को भी स्वीकार करते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि किस प्रकार हीनयान के गर्भ से महायान-धर्म और दर्शन के विचारों का उदय होता है । हमने इस अध्याय में सौत्रान्तिक और सर्वास्तिवाद के मुख्य मुख्य भेदों का वर्णन किया है। आगे महायान के अन्तर्गत दर्शनों का विचार प्रारंभ करेंगे।