पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/४७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सप्तदश अध्याय आर्य प्रसंग का विज्ञानवाद विशनवाद के प्रथम प्राचार्य श्रसंग हैं । उनके गुरु मैत्रेयनाथ इस सिद्धान्त के प्रतिष्टा- पक है । महायानसूत्रालंकार इन गुरु-शिष्यों की संमिलित कृति है । मूलभाग मैत्रेयनाथ का और टीकाभाग आर्य असंग का कहा जाता है । इसलिए, इसमें सन्देह नहीं कि विज्ञानवाद का सबसे प्रधान ग्रन्थ महायानसूत्रालङ्कार है ! हम देखेंगे कि असंग का दर्शन समन्वयात्मक है। इसमें सौत्रान्तिकों का क्षणिकवाद, सर्वास्तिवादियों का पुद्गल-नैरात्म्य, और नागार्जुन की शून्यता का प्रतिपादन है। किन्तु असंग इस समन्वय को पारमार्थिक विज्ञानवाद की परिधि में संपादित करना चाहते हैं । वस्तुतः असंग का दर्शन विज्ञानवादा अद्वयवाद है, जिसमें द्रव्य का अभाव है । मानना होगा कि यह एक नवीन मतवाद है। हम यहां पर महायानसूत्राकार के आधार पर असंग के दर्शन का विवेचन कर रहे हैं। महायान का बुख-बचनस्व-प्रथम अध्याय में महायान की सत्यता सिद्ध की गयी है। विप्रतिपन्न कहेंगे कि महायान बुद्धवचन नहीं है। यदि महायान सद्धर्म में अन्तराय होता, और महायानसूत्रों की रचना पीछे से किसी ने की होती, तो जिस प्रकार भगवान् ने अन्य अनागतमयों का पहले ही व्याकरण कर दिया था तद्वत् इस अनागत भय का भी व्याकरण किया होता । पुनः श्रावकयान और महायान की प्रवृत्ति नारंभ से ही एक साथ हुई है । महायान की प्रवृत्ति पश्चात् नहीं हुई हैं | यह एक उदार और गंभीर धर्म है । अतः यह ताकिकों का गोचर नहीं है। तीथिक शास्त्रों में यह प्रकार नहीं पाया जाता । अतः यह कहना युक्त नहीं है कि तीथिकों ने इस धर्म का व्याख्यान किया है । पुनः यदि इस धर्म का व्याख्याता कोई अन्य है, जो सम्यक्-संबोधि को प्राप्त है, तो यह निःसन्देद बुद्धवचन है, क्योंकि वहीं बुद्ध है जो स्बोधि की प्राप्ति कर देशना देता है। पुनः यदि कोई महायान है, तो इसका बुद्धवचनत्व सिद्ध है, क्योंकि किसी दूसरे महा- यान का अभाव है। अथवा यदि कोई महायान नहीं है, तो उसके अभाव में श्रावकमान का भी अभाव होगा। यह कहना युक्त न होगा कि श्रावक्रयान तो बुद्धवचन है, और महायान नहीं है । क्योंकि बुद्धयान के विना बुद्धो का उत्पाद नहीं होता। महायान की भावना से क्लेश प्रतिपक्षित होते हैं, क्योंकि यह सर्व निर्विकल्प ज्ञान का श्राश्य है। यह भी इसके बुद्धवचन होने का प्रमाण है।