पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/४९३

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४०५ अख्यान ही विमुक्ति है। यह उपलम्भ का परम विगम है, क्योंकि इसमें पुद्गल और धर्मों का उपलम्भ नहीं होता (१९४७)। योगी नाममात्र अर्थात् अर्थरहित अभिलापमात्र पर मन का अाधान करता है। नाम चार अरूपी स्कन्ध कहे गए हैं। इस प्रकार वह विशसिमात्र का दर्शन करता है । इसको मी वह पुन: नहीं देखता, क्योंकि अर्थाभाव से उसकी विशति का श्रदर्शन होता है। यह अनुपलम्भ विमुक्ति है (१९४८)। यह बानकर आश्चर्य होता है कि यह साधना पाताल योग के समीप है। क्या प्रसंग का निम्न वाक्य योगसूत्र में दिए लक्षण का स्मरण नहीं दिलाता? चित्त की अध्यात्मस्थिति से, अर्थात् चित्त का चित्त में ही अवस्थान होने से चित्त को निवृत्ति होती है, क्योंकि इस अवस्था में श्रालंबन का अनुपलम्भ होता है । el चित्तमेतत् सदौष्ठुल्यमात्मदर्शनपाशितम् । प्रवर्तते निवृत्तिस्तु तदध्यात्मस्थितेर्मता ।। [ ११४६] किन्तु एक प्रधान भेद योगाचार को योग से पृथक् करता है । पाताल योग में धर्मों का स्वभाव है, और योगाचार में इसका अभाव है। असग कहते हैं कि धर्मों की निःस्वभावता है, स्वात्म से उनका अभाव है। वे प्रत्ययाधीन हैं, और क्षणिक हैं। केवल मूड़ पुरुषों का स्वभावमाह होता है। वह स्वभाव को नित्यतः, सुखतः, शुचिता और श्रात्मतः देखते हैं ( ११।५०)। धर्मों की नि:स्वभावता से यह सिद्ध होता है कि न उत्पाद है, न निरोध । अब धमों का स्वभाव नहीं है, तो उनका उत्पाद नहीं है, और जो अनुत्पन्न है, उसका निरोध नहीं है । अतः वह आदिशान्त है, और बो श्रादिशान्त है, वह प्रकृति-परिनिर्वत है (१९५१)। निस्वभावतया सिद्धा उत्तरोत्तरनिभया:। अनुत्पादोऽनिरोधश्चादिशान्तिः परिनिईतिः ॥ [११३५१) बारहवें अधिकार में असंग बताते हैं कि दोषविवर्जित धर्मदेशना क्या है, उसका कार्य क्या है, उसकी सम्पत्ति क्या है, और उसका विषय क्या है । ग्रन्थ के तेरहवें अधिकार में वह दिखाते है कि उक्त सिद्धान्तों के प्रयोग से किस प्रकार बोधिसत्व क्रमपूर्वक अनुत्तर सिद्धि को प्राप्त होता है। यह प्रतिपत्ति-अधिकार है। बौकिक अलौकिक समाधि-शून्यता-समाधि, अप्रणिहित-समाधि, प्रनिमित्त-समाधि, चर्या का प्रारंभमात्र है। ये तीन लौकिक समाधि है। किन्तु यह लोकोत्तर शान का आवाहन करती है, और इसलिए यह मिथ्या नहीं है । श्रादिभूमि में (प्रमुदिता भूमि में ) ही वह लोको- घर ज्ञान का लाभ करता है। वहां उस भूमि के सब बोधिसत्वों से उसका तादात्म्य हो जाता