पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/५०६

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बौद-धर्म-दर्शन पुनः वह कहते हैं कि विज्ञप्तिमात्र का व्यवस्थान उसी विज्ञप्त्यन्तर से होता है, जिस विशप्त्यातर द्वारा परिकल्पित आत्मा उस विज्ञप्तिमात्र के भी नैरात्म्य में प्रवेश होता है। विज्ञप्तिमात्र के व्यवस्थापन से सब धर्मों के नैराम्य में प्रवेश होता है; किन्तु उनके अस्तित्व के अपवाद से नहीं होता। यदि अन्यथा होता तो विज्ञप्ति का विश्प्यन्तर अर्थ होता, और इस प्रकार विज्ञप्तियों के अर्थवती होने से विज्ञप्तिमात्रत्व की सिद्धि न होती। इस प्रकार वसुबन्धु का विज्ञानवाद माध्यमिकों के शून्यतावाद और हीनयान के बहुधर्मवाद के बीच प्रवर्तित होता है। परमाणुवाद का खयधन विप्तिमात्रता की व्यवस्था करके वसुबन्धु अथप्रतीति का विवेचन करते हैं। वह कहते है कि यह कैसे विश्वास किया जाय कि भगवान् का यह वचन कि रूपादि अायतन का अस्तित्व है, अभिप्रायवश उक्त है; और उनका अस्तित्व नहीं है, जो रूपादि विज्ञप्तियों के विषय हैं । वह कहते हैं कि रूपादिक पायतन या तो एक है, और अवस्वरूप है, जैसा कि वैशेषिको की कल्पना है, अथवा परमाणुशः अनेक है, अथवा यह परमाणुमंहत है । किन्तु एक विज्ञप्ति का विषय नहीं होता, क्योकि अवयवों से अन्य अवयवी के रूप का का ग्रहण नहीं होता। अनेक भी विषय नहीं होता, क्योंकि परमाणुओं में से प्रत्येक का ग्रहण नहीं होता । पुनः संहत परमाणु भी विज्ञप्ति के विषय नहीं होते, क्योंकि यह सिद्ध नहीं है कि परमाणु एक द्रव्य है । प्रश्न है कि यह कैसे सिद्ध नहीं है कि परमाणु एक द्रव्ध है । इम स्थल पर प्राचार्य परमाणु का विवेचन करते हैं। क्या परमाणु का दिग-भाग-द है । इस अवस्था में यह विभजनीय है, इसलिए परमाणु नहीं है। यदि छः दिशाओं में इसका अन्य छः परमाणुओं से युगपत् योग होता है, तो परमाणु की पडंशता प्राप्त होती है । यदि परमाणु का दिग-भाग- भेद नहीं है, यदि जो देश एक परमाणु का है वहाँ छः का है, तो सबका समान देश होने से सर्व पिंड परमाणुमात्र होगा । यह अयुक्त है । पुनः इस अवस्था में किसी प्रकार पिड संभव नहीं है। काश्मीर वैभाषिक कहते है कि निरवयत्र होने से परमाणुओं का संयोग नहीं होता, किन्तु संहत होने पर उनका परस्पर संयोग होता है | यमुबन्धु कहते हैं कि इनसे पूछना चाहिये कि क्या परमाणुओं का संघात उन परमाणुगों से अर्थातर है | यदि इन परमाणुओं का संयोग नहीं होता, तो संघात में किसका संयोग होता है ? पुनः संघातों का भी अन्योन्य संयोग नहीं होता। यह न कहना चाहिये कि परमाणुओं के निरवयवत्व के कारसा संयोग सिद्ध नहीं होता, क्योंकि सावयव संघात का भी संयोग नहीं होता। अतः परमाणु एक द्रव्य नहीं है, चाहे परमाणु का संयोग इष्ट हो या न हो, जिसका दिग्भागद है उसका एकत्व अयुक्त है । परमाणु का अन्य पूर्व दिगभाग है, अन्य अधो दिग्भाग है, इत्यादि । इस प्रकार जब दिगभागभेद है, तो तदात्मक परमाणु का एकत्व कैसे युक्त होगा ? और यदि एक एक परमाणु को यह दिग्भागभेद न स्वीकार किया जाय तो प्रतिधात कैसे होगा १ संघात