पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/५२५

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अष्टादश अध्याय गौण उसे कहते हैं, बो वहाँ अविद्यमान रूप से प्रवृत्त होता है । सब शब्द प्रधान में अविद्य- मान गुण-रूप में प्रवृत्त होते हैं । अतः मुख्य नहीं है । अतः यह प्रयुक्त है कि मुख्य प्रात्मा और मुख्य धर्म के न होनेपर उपचार युक्त नहीं है भगवान् उपचारवश श्रात्मा और धर्म, इन शब्दों का प्रयोग करते है। इससे यह परि. णाम न निकालना चाहिए कि मुख्य प्रात्मा और मुख्य धर्म है । वह श्रात्मधर्म में प्रतिपन्न पुद्गलों को विनीत करना चाहते हैं । अतः वह उन मिथ्या संशाओं का प्रयोग करते हैं, जिनसे लोग विज्ञान-परिणाम को प्राप्त करते हैं | विज्ञान के विविध परिणाम विज्ञान-परिणाम तीन प्रकार का है :-विपाकाख्य, मननाख्य, विषय-विज्ञप्त्याख्य । 'विपाक अष्टम विज्ञान कहलाता है । शुभाशुभ कर्म की वासना के परिणाक से जो फल की श्रमिनिवृति होती है, वह विपाक है। मन ( सप्तम विज्ञान ) 'मनना' (यह स्थिरमति का पाठ है, किन्तु प्रसे का पाठ 'मन्यना' है ) कहलाता है, क्योंकि क्लिट मन नित्य मनन ( कोजिटेशन) करता है (पालि, मज्जना; व्युत्पत्ति, २४५, ६७७ में मन्यना है )। 'विषय-विशति छः प्रकार का चक्षुरादिविजान कहलाती है, क्योंकि इनसे विषय का प्रत्यवभास होता है । यह तीन परिणामि-विज्ञान कहलाते हैं। विज्ञान-परिणाम का हेतु-फलभाव - यह विज्ञान-परिणाम हेनुभाव और फलभाव से होता है । हेतु परिणाम अष्टम विज्ञान की निष्यन्दवासना और विवाकवासना है। कुशल, अकुशल, अव्याकृत सात विशानों से बीजों की जो उत्पत्ति और वृद्धि होती है, वह निष्यन्द- वासना है | सासव कुशल और अकुशल छः विज्ञानों से बीजो की जो उत्पत्ति और वृद्धि होती है, वह विपाक-वाराना है। बो इन दो वासनाओं के बल से विज्ञानों की उत्पत्ति होती है, और उनके त्रिविध लक्षण प्रकट होते हैं। यह फलपरिणाम है। जब निष्यन्दवासना हेतु-प्रत्यय होती है, तब श्राट विज्ञान अपने विविध स्वभाव और लक्षणों में उत्पन्न होते हैं। यह निष्यन्द-फल है, क्योंकि फल हेतु के सहश है । जब विपाक- वासना अधिपति-प्रत्यय होती है, तब अष्टम विज्ञान की उत्पत्ति होती है । इसे विपाक कहते हैं, क्योंकि वह श्राक्षेपक कर्म के अनुमार है, और इसका निरन्तर संतान है । प्रथम छ। विज्ञान, ओ परिपूरक कर्म के अनुरूप है, विपाक से उत्पन्न होते हैं। इन्हें विधाजक कहते हैं (विपाक नहीं), क्योंकि इनका उपच्छेद होता है । विपाकन और पिाक विपाकफज़ कहलाते है, क्योंकि यह स्वहेतु से विसदृश हैं । 'विपाक' पल-परिणाम-विज्ञान' इष्ट है। यह प्रत्युत्पन्न अष्टम विशान है। यह प्रात्म-प्रेम का नास्पद है। यह संक्लेश के बीजों का धारक है। किन्तु शुमान-बांग यह कहना नहीं चाहते कि केवल अधम विज्ञान विपाक-फल है । केवल अष्टम विज्ञान हेतुपरिणाम है। यही बीजों का ( शक्तियों का) संग्रह करता है । इसलिए इसे 'बीज-विज्ञान', 'श्रालय-विज्ञान' कहते हैं। यहां बीन-वासना कहलाते हैं,