पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/५२६

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क्योंकि बीजों की उत्पत्ति भावनाए, 'वासना से होती है। अन्य सात प्रवृत्ति-विज्ञान अष्टम विज्ञान को वासित करते हैं। यह बीजों को उत्पन्न करते है। यह नवीन बीजों का श्राधान करते हैं, या वर्तमान बीबों की वृद्धि करते हैं। बीज दो प्रकार के हैं :-१. सात प्रवृत्ति-विज्ञान (कुशल, अकुशल, अव्याकृत, सासव, अनासव ) निष्यन्द-बीजों को उत्पन्न करते हैं, और उनकी वृद्धि करते हैं । २. सप्तम विज्ञान 'मन' को वर्जित कर शेष छः प्रवृत्ति-विज्ञान (अकु- खल, सासव, कुशल ) बीजों का उत्पाद करते हैं, और उनकी वृद्धि करते हैं। इन बीजों को कर्मबीब, विपाकबीज कहते हैं। कर्म-हेतु बीज द्वारा फल की अभिनिति करता है। यह फल स्वहेतु से विसहश होता है । इसलिए इसे विपाक ( विसदृश पाक ) कहते हैं। हेतु, यया प्राणातिपात की चेतना, स्वर्ग-प्राप्ति के लिए दान, व्याकृत है; फल (नरकोपपत्ति या स्वर्गोप- पत्ति) अध्याकृत है । फलपरिणाम प्रवृत्ति-विज्ञान और संवित्तिभाग है, जो बीजदय का फल है, अर्थात् बीन-विज्ञान का फल है। इसका परिणाम दर्शन और निमित्त में होता है। प्रथम प्रकार के बीच इस फल के हेतु-प्रत्यय है। यह अनेक और विविध है। यह पाठ विशान, इन अाठ के भागसमुदय और उनके संप्रयुक्त चैत्र को उत्पन्न करते हैं। द्वितीय प्रकार के बीच 'अधिपति-प्रत्यय' है। यह मुख्य विपाक, अर्थात् अष्टम विज्ञान का निर्वर्तन करते हैं। अष्टम विज्ञान प्रक्षेपक कर्म से उत्पादित होता है । इसका अविच्छिन स्रोत है । यह सदा अव्याकृत होता है। परिपूरक कर्म के प्रथम पविज्ञान की प्रवृत्ति होती है। यहां विपाक नहीं है, किन्तु विपाकन है; क्योंकि इनका उपच्छेद होता है, और इनकी उत्पत्ति अष्टम विज्ञान से होती है। स्थिरमति का मत इस संबन्ध में भिन्न है। उसके अनुसार हेतु-परिणाम श्रालय के परिपुष्ट विपाक-बीज और निष्यन्द-बीज हैं, तथा फल-परिणाम विपाक-बीजों के वृत्तिलाभ से श्रापक कर्म की परिसमाप्ति पर अन्य निकायसमाग में श्रालय-विज्ञान की अभिनि ईति है, निष्यन्द-बीजों के कृत्तिलाम से प्रवृत्ति-विज्ञान और क्रिष्ट मन की प्रालय से अभिनिईत्ति है। यहां प्रवृत्ति-विज्ञान (कुशल-अकुशल ) प्रालय-विधान में दोनों प्रकार के बीचों का प्रापान करता है। अन्याकृत प्रवृत्ति-विधान और विष्ट मन निष्यन्द-बीबों का प्राधान हमने ऊपर त्रिविध परिणाम का उल्लेख किया है। किन्तु अभी उनका स्वरूप निर्देश नहीं किया है । स्वरूप-निर्देश के बिना प्रतीति नहीं होती। अतः जिसका ओ स्वरूप है, उसको यथाक्रम दिखाते हैं। पहले अालय-विज्ञान का जो विपाक है, उसका स्वरूप निर्दिष्ट करते हैं। यह अटम विधान है। मानव-विज्ञान श्रावय का स्वरूप-यालय-विज्ञान विशनों का श्रालय, संग्रह-स्थान है। अथवा यह वह विज्ञान है, वो श्रालय है। श्रालय का अर्थ स्थान है। यह सर्व सांक्लेशिक बीजों का