पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/५२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पौच-धर्म-दर्शन बीज और गोत्र-बीजों के इस सिद्धान्त के अनुसार गुयान-बांग विविध गोत्रों को व्यवस्थापित करते हैं। प्रत्येक के शुभ-अशुभ बीजों की मात्रा और गुण के अनुसार यह गोत्र व्यवस्थापित होते हैं। जिनमें अनासव बीजों का सर्वथा अभाव होता है, वह अपरिनिर्वाणधर्मक या अगोत्रक कहलाते हैं। इसके विपरीत जो बोधि के बीज से समन्वागत है, वह तथागत-गोत्रक है। इस प्रकार यह बीच-शक्ति पूर्व से विनियत होती है। बीज स्वरूप-बीज क्षणिक हैं और समुदाचार करनेवाले धर्म या अन्य शक्ति का उत्पाद कर विनष्ट होते हैं। यह सदा अनुप्रबद्ध हैं। बीज प्रत्यय-सामग्री की अपेक्षा करते हैं। बीज और धर्म की अन्योन्य हेतु-प्रत्ययता है, बीजों का उत्तरोत्तर उत्पाद होता है । बीज श्रालय- विज्ञान के तल पर धर्मों का उत्पाद करते हैं, और धर्म अालय-विज्ञान के गर्भ में बीज का संग्रह करते हैं। अथवा हुम प्रक्ध का संप्रधारण कर सकते है। तीन धर्म है। १. जनक बीज। २. विज्ञान, जो समुदाचार करता है, और बीज से बनित है। ३. पूर्वोक्त विज्ञान की भावना से संभृत नवीन बीज । यह तीन क्रम से हेतु और फज़ है, किन्तु यह सहभू हैं। यह नडकलाप के समान अन्योन्याभित हैं। प्रालय का आकार और मालंबन-शुमान-न्यांग प्रालय के अाकार और श्रालंबन का विचार करते हैं। यदि प्रवृत्ति-विक्षन से व्यतिरिक्त श्रालय-विज्ञान है, तो उसका बालंबन और श्राकार बताना चाहिये । निरालंबन या निराकार विशान युक्त नहीं है। इसलिए, श्रालय-विज्ञान भी निरालंबन या निराकार नहीं हो सकता । . माकार-ग्रालय का श्राकार, यथा सर्व विज्ञान का प्राकार, विज्ञप्ति ( विज्ञप्ति-क्रिया ) है। विज्ञप्ति को दर्शनभाग कहते हैं। मालंबन-यालय का श्रालंबन द्विविध है :-स्थान और उपादि । स्थान-भाजनलोक है, क्योंकि यह सत्यों का सनिश्रय है । उपादि-(इन्टिरियर श्रान्जेक) बीज और सेन्द्रियक काय है । इन्हें 'उपादि' कहते हैं, क्योंकि यह श्रालय मे उपात्त है, श्रालय में परिगृहीत है और इनका एक योगक्षेम है। बीज से वासनात्रय इष्ट है :-निमित्त, नाम और विकल्प । सेंद्रियक काय, रूपोंद्रिय और उनका अधिष्ठान है। मालय से बोक की उत्पति इस सिद्धान्त के अनुसार लोक की उत्पत्ति इस प्रकार है :-श्रालयविज्ञान गा मूलविज्ञान का अध्यात्म-परिणाम बीज और सेन्द्रिय काय के रूप में ( उपादि ) होता है, और बहिर्षा परिणाम भाजनलोक के रूप में (स्थान ) होता है । यह विविध धर्म उसके निमित्त भाग है। यह निमित्त भाग उसका श्रालंबन है। प्रालबनवश उसकी विज्ञप्ति किया है । यह उसका प्राकार है । यह विज्ञप्ति-क्रिया श्रालय-विज्ञान का दर्शनभाग है। इस प्रकार ज्यों ही