पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/५३८

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बौद-धर्म-दर्शन होते।" यहाँ शुभान-ध्वांग कहते हैं कि योगशास्त्र में इसी स्थल में यह भी कहा है कि अवै- वर्तिक बोधिसत्व में भी प्रालय नहीं होता। धर्म के अनुसार अचला भूमि से बोधिसत्व की 'अवैवर्तिक' संज्ञा हो जाती है। इस भूमि से उनमें श्रालय-विज्ञान नहीं होता और वह भी वसुबन्धु के 'अहत्' में परिगणित होते हैं। इसमें सन्देह नहीं कि इन बोधिसत्वों ने विपाक-विज्ञान के क्लेश-धीजों का अभी सर्वथा प्रहाण नहीं किया है। किन्तु इनका समुदाचरित चित्त-सन्तान सर्व विशुद्ध है, और इस- लिए बार-१ष्टि श्रादि मनस् के क्लेश इस विपाव-विज्ञान में आत्मवत् अालीन नहीं होते। अत: इन बोधिसत्वों की गणना श्रहंत में की गयी है। मन्द के अनुसार प्रथम भूमि से ही बोधिसत्व अवैवर्तिक होता है । प्रथम प्राचार्य और धर्मपाल इससे सहमत नहीं है। जो कुछ हो, बोधिसत्व की अर्ध भूमियों में सर्व क्लेश-बीज का प्रहाण होना है । विज्ञान-सन्तान के अनासव होने से मनस् का इस विज्ञान में अात्मत् अधिक अभिनिवेश नहीं होता, अत: बोधिसत्व का विज्ञान प्रालय-मूल की संज्ञा को खो देता है। शुश्राम योग कहते हैं कि हम नहीं मानते कि अालय-विज्ञान की व्यावृत्ति से सर्वप्रकार के श्रम विज्ञान का प्रहाण होता है । मएम विज्ञान पर शुमान स्वाँग का मत वस्तुत: सब सत्वों में अटम विज्ञान होता है। किन्तु भिन्न दृष्टियों के कारण इस अष्टम विज्ञान के भिन्न नाम होते है। इसे चित्त ('चि' धातु से) कहते हैं, क्योंकि यह विविध धर्मों से भावित, बीजों से श्राचित होता है। यह आदान-विज्ञान है, क्योंकि यह बीज तथा रूपीन्द्रियों का आदान करता है और उनका नाश नहीं होने देता। यह ज्ञेयाश्रय है, क्योंकि अष्टम विज्ञान क्लिष्ट और अनासव, मत्र धर्मों को जो ज्ञेय के विश्य है, अाश्रय देता है। यह बीज-विज्ञान है, क्योंकि यह सब लौकिक और लोकोत्तर बीजों का वहन करता है। यह नाम तथा अन्य नाम ( मूल, भवांग, संसारकोटिनिष्ठस्कन्ध ) अष्टम विज्ञान की सब अवस्थाओं के अनुकूल है। किन्तु इसे प्रालय, विपाक-विज्ञान, विमल-विज्ञान भी कहते है। इसे श्रालय इसलिए कहते हैं कि इसमें सर्व सांक्लेशिक धर्म संग्रहीत है, और उनको वह निकम होने से रोकता है, क्योंकि श्रात्मदृष्टि श्रादि अात्मवत् इसमें बालीन हैं। केवल पृथम्बन और शैतों के अष्टम विज्ञान के लिए प्रालय-संज्ञा उपयुक्त है, क्योंकि अहंत और अवैवर्तिक बोधिसत्व में समलिशिक धर्म नहीं होते। अष्टम विज्ञान विपाक-विज्ञान है, क्योंकि संसार के श्राक्षेपक शुभ-अशुभ कर्मों के विपक का यह फल है।