पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/५५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दौर-धर्म-दर्शन पश्चात् अंकुर की उत्पत्ति होती है, और हम जानते हैं कि अर्चि और दीप अन्योन्य-हेनु और सहभू-हेतु है। वह कहते हैं कि बीज और संभूय धर्म अन्योन्योत्पाद करते हैं और सहभू हैं । इसीलिए, योगशास्त्र ( ५, १२ ) में हेतु-प्रत्यय का लक्षण इस प्रकार दिया है-अनित्य धर्म ( बीज और संभूय धर्म ) अन्योन्य-हेतु है, और पूर्व बीज अपर बीज का हेतु है । इसी प्रकार महायान-संग्रह में कहा है कि 'श्रालय-विज्ञान और ( संभूय ) क्लिष्ट धर्म एक दूसरे के हेतु-प्रत्यय है । यथा नकलाप होते हैं, और एक साथ अवस्थान करते हैं। इसी अन्य में ( ३८६, ३) अन्यत्र कहा है कि बीज और फल सहभू हैं। अतः बीजाश्रय में पूर्व-चरिम नहीं है । अष्टम विज्ञान और उसके चैत्तों का आश्रय उनके बीज है । सहभू-मामय या अधिपति-भाशय-मन्द के मत में पाँच विज्ञान ( चक्षुर्विज्ञानादि ) का एकमात्र सहभू-धाश्रय मनोविज्ञान है, क्योंकि जब पंच-विज्ञान काय का समुदाचार होता है, तब मनोविज्ञान भी अवश्य होता है । जिन्हें इन्द्रिय कहते हैं, वह पंच-विज्ञानों के सहभू- आश्रय नहीं है, क्योंकि पंचेन्द्रिय बीजमात्र हैं, जैसा कि विशतिका कारिका (६) में कहा है । इस कारिका का यह अभिप्राय है कि द्वादशायतन की व्यवस्था के लिए और अात्मा में प्रतिपन्न तीथिकों का खंडन करने के लिए बुद्ध पाँच विज्ञान के बीजों को इन्द्रिय संज्ञा देते हैं। सप्तम और अष्टम विज्ञान का कोई सहभू-आश्रय नहीं है, क्योंकि इनका बड़ा सामर्थ्य है और इस कारण यह संतान में उत्पन्न होते हैं। मनोविज्ञान की उत्पत्ति उसके सहभू-श्राश्रय मनस् से है । स्विरमति के मत में पांच विज्ञानों के सदा दो सहभू-श्राश्रय होते हैं:--पाँच रूपीन्द्रिय और मनोविज्ञान | मनोविज्ञान का सदा एक सहभू-श्राश्रय होता है और यह मनस् है । जब यह पाँच विज्ञानों का सहभू होता है, तब इसका रूपोन्द्रिय मी आश्रय होता है। मनम् का एक ही सहभू-आश्रय है और यह अष्टम विज्ञान है । अष्टम विज्ञान विकारी नहीं है । यह स्वतः धृत होता है, अतः इमका सहभू-श्राश्रय नहीं है। स्थिरमति नन्द के इस मत को नहीं मानते कि रूपीन्द्रिय पाँच विज्ञानों के बीजमात्र है। वह कहते हैं कि यदि यह बीज है तो यह हेतु-प्रत्यय होंगे, अधिपति-प्रत्यय नहीं । पाँच विज्ञान के बीज कुशल-अकुशल होंगे। अतः पाँच इन्द्रिय एकान्तेन अव्याकृत न होगी, जैसा शास्त्र कहते हैं । पाँच विज्ञान के बीज 'उपान' नहीं हैं। यदि पंचेन्द्रिय बीज है तो वह उपात्त न होगी। यदि पाँच इन्द्रिय पाँच विज्ञानों के बीज हैं तो मनस् को मनोविज्ञान का बीज मानना पड़ेगा। पुनः योगशास्त्र में जन्नुर्विज्ञानादि के तीन श्राश्रय बताये हैं | यदि चक्षु चतुर्विशः का बीज है तो इसके केवल दो आश्रय होंगे। धर्मपाल इन पायों को दूर करते हैं। वह कहते हैं कि इन्द्रिय बीज है। किन्तु यह वह बीज नहीं हैं जो हेतु-प्रत्यय हैं, जो प्रत्यक्ष पाँच विद्वानों को जन्म देते हैं, किन्तु यह कर्म-बीज