पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/५५५

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अष्टादशवाय ७६७ हैं जो अधिपति-प्रत्यय है, जो पंचविशान काय को अभिनिवृत्त करते हैं। किन्तु स्थिरमति इस निरूपण से संतुष्ट नहीं हैं। वह इसका उत्तर देते हैं। शुभचार प्रायः स्थिरमति से सहमत हैं। किन्तु वह कहते हैं कि अष्टम विज्ञान का एक महभू-श्राश्रय होना चाहिये। वह कहते हैं कि अष्टम विज्ञान भी अन्य विज्ञानों के सदृश एक विज्ञान है। अतः दूसरों की तरह इसका भी एक सहभू-आश्रय होना चाहिये। सप्तम और अष्टम विज्ञान की सदा सहप्रवृत्ति होती है। इसके मानने में क्या आपत्ति है कि यह एक दूसरे के श्राश्रय हैं। शुभचन्द्र का मत है कि अष्टम विज्ञान ( संभूय-विज्ञान ) का महभू-आश्रय मनस है । जत्र कामधातु और रूपधातु में इसकी उत्पत्ति होती है, तो चन्नु आदि रूपद्रिय इसके द्वितीय आश्रय होते हैं। बीज का अाश्य संभूय अष्टम या विषाक-विज्ञान है । जिम क्षण में वह इसमें वामित होते हैं, तब उनका आश्रय वह विज्ञान भी होता है जो वासित करता है । धर्मपाल के मत में पाँच विज्ञानों के चार सहभू आश्रय हैं:-पंचेन्द्रिय, मनोविज्ञान, सप्तम, अष्टम विज्ञान । इन्द्रिय पंच-विज्ञान के समविय-याश्रय है, कोंकि यह उही त्रिपयां का ग्रहण करती हैं। मनोविज्ञान विकल्याश्रय है। मनोविज्ञान विकल्प है, किन्तु अविकल्पक विज्ञानों का श्राश्रय हैं। मनम् संक्लेश-व्ययदान-श्राश्रय है, क्योंकि इसपर इनका संक्लेश अथवा व्यवदान आश्रित है । अष्टम विज्ञान मूलाश्रय है। मनोविज्ञान के दो सहभू-प्राश्रय है--सप्तम और अष्टम विज्ञान । जब पंच-विज्ञान इसके आश्रय होते हैं, तब यह अधिक पटु होता है, किन्तु मनोविज्ञान के अस्तित्व के लिए पंच-विज्ञान आवश्यक नहीं है; अतः वह उसके आश्रय नहीं माने जाते मनस् का केवल एक सहभू-श्राश्रय है । यह अधम विज्ञान है । यथा लंकावतार ( १०,२६६ ) में कहा है-श्रालय का श्राश्रय लेकर मन का प्रवर्तन होता है। अन्य प्रवृत्ति-विज्ञानी का प्रवर्तन चित्त ( अालय ) और मनस् का अाश्रय लेकर होता है । अष्टम विज्ञान का सहभू-श्राश्रय सप्तम विज्ञान है । योगशास्त्र में (६३, ११) कहा है कि सदा प्रालय और मनस् एक साथ प्रवर्तित होते हैं । अन्यत्र कहा है कि अालय मदा क्लिष्ट पर श्रानित होता है । 'क्लिष्ट' से 'मनस्' इष्ट है यह सत्य है कि शास्त्र में उपदिष्ट है कि तीन अवस्थाश्रो में (अहंत में, निरोध-समापत्ति- काल में, लोकोत्तर-मार्ग में ) मनस् का अभाव होता है। किन्तु इसका यह अर्थ है कि इन तीन अवस्थात्रों में निवृत्त मनस् का अभाव होता है, सप्तम विज्ञान का नहीं । इसी प्रकार चार अवस्थाओं में ( श्रावक, प्रत्येकबुद्ध, अवैवर्तिक बोधिसत्व, तथागत ) श्रालय की व्यावृत्ति होती है, किन्तु अष्टम विज्ञान की नहीं होती। जब अष्टम विज्ञान की उत्पत्ति काम-रूप धातु में होती है तब पाँच रूपीन्द्रिय भी आश्रय रूप में गृहीत होती हैं। किन्तु अधम विज्ञान के लिए आश्रय का यह प्रकार श्रावश्यक नहीं है। श्रालय-विज्ञान के बीज ( बीज-विज्ञान ) विषय का ग्रहण नहीं करते। अतः बीज Į अाश्रय नहीं है ।