पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/५५६

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बौद-भमर्शन 1 1 संप्रयुक्त-धर्म ( चैत्त ) का वह विज्ञान आश्रय है, जिससे वह सप्रयुक्त है। इस विधान के आभय भी चैत्त के प्राभय हैं। समनन्तर-प्रत्यय-भाष और काम्स-प्रश्रय-नन्द के मत में पंच-विज्ञान का उत्तरो- तर क्षण-संतान नहीं होता, क्योंकि इसका आवाहन मनोविज्ञान से होता है। अतः मनोविज्ञान उनका एकमात्र कान्त-आनय है । क्रान्त-श्राश्रय मार्ग का उद्घाटन करता है और पथ-प्रदर्शक होता है। (पंच-विज्ञान के समनन्तर मनोविज्ञान होता है । चक्षुर्विज्ञान के क्षण के उत्तर चतु- विशन या श्रोत्र-विज्ञान का क्षण नहीं होता, किन्तु मनोविज्ञान का क्षण होता है।) मनोविज्ञान का सन्तान होता है । पुनः पंच-विज्ञान इसका श्राबाहन कर सकते हैं । अतः छः प्रवृत्ति-विज्ञान इसके क्रान्त-श्राश्रय सप्तम और अष्टम विज्ञान का अपना अपना सन्तान होता है । अन्य विज्ञान इसका अावाहन नहीं करते । अतः सप्तम और अष्टम क्रम से इनके क्रान्त-श्राश्रय स्थिरमति के मत में नन्द का मत यथार्थ है, यदि हम अवशित्व की अवस्था में, विश्य से विज्ञान का सहसा संनिपात होने की अवस्था में, एक हीन विषय से संनिधात की अवस्था में, पंच-विज्ञान का विचार करें । किन्तु वशित्व की अवस्था का, निष्यन्द विज्ञान का, उद्भूत-वृत्ति के विषय का हमको विचार करना है। बुद्ध तथा अन्तिम तीन भूमियों के बोधिसत्व विषय-वशित्व से समन्वागत होते हैं। इनकी इन्द्रियों की क्रिया स्वरसन हाती है । यह पर्वेषणा से वियुक्त होता है । एक इन्द्रिय की क्रिया दूसरी इन्द्रिय से संपन्न हो सकती है। क्या आप कहेंगे कि इन अवस्थात्रों में पंच-विज्ञान का सन्तान नहीं होता। विषय के सनिपात संपंच-विज्ञान की उत्पत्ति होती है। किन्तु निष्यन्द-विज्ञान का आवाहन व्यवसाय मनस्कार के बल से, क्लिष्ट अथवा अनासव मनस्कार के बल से होता है। इन पाँच का ( मनोविज्ञान के साथ ) विश्व में समवधान होता है। आप यह कैसे नहीं स्वीकार करते कि एक विज्ञान (पंच-विज्ञान ) सन्तान है ? उद्भूत-वृत्ति के विषय में संमुखीभाव से काय और चित्त ध्वस्त हो जाते हैं। उस समय पंच विज्ञानकाय अवश्यमेव सन्तान में उत्पन्न होत है। उष्ण नरक में ( अम्नि के उद्भूत-वृत्तित्व से ) तथा क्रीड़ा प्रदूषिक देवों में ऐसा होता है । अतः पंच-विशान का क्रान्त-भाभय छः विज्ञानों में से कोई भी एक विज्ञान हो सकता है। वस्तुतः या तो वह अपनी ही सन्तान बनाते हैं, या अन्य प्रकार के विज्ञान से उनका भाषाहन होता है। मनोविज्ञान-जब पंच-विज्ञान की उत्पत्ति होती है तब मनोविज्ञान का एक क्षण अवश्य वर्तमान होता है । यह क्षण मनोविज्ञान के उत्तर क्षण को श्राकृष्ट करता है, और उसका उत्पाद करता है । इस द्वितीय क्षण के यह पाँच फ्रान्त-आश्रय नहीं है। अतः पूर्ववर्ती