पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/५५९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

महादश अध्याय ओ कल्पित आत्मा का आश्रय लेकर चित्त की उन्नति करता है। ४. अात्मस्नेह-यह अात्मप्रेम है जो श्रात्मा में अभिवंग उत्पन्न करता है। इन चार क्लेशों के अतिरिक्त अन्य चैत्तों से क्या मनस् का संप्रयोग नहीं होता। एक मत के अनुसार मनस् का संप्रयोग केवल नौ चैत्तों से होता है।

-चार मूल क्लेश

और स्पादि पाँच सर्वत्रग। कारिका में उक्त है कि प्रालय-विज्ञान मर्वत्रग से सहगत है। यह दिखाने के लिए कि मनस् के सर्वत्रग श्रालय के सर्वत्रगों के सदृश अनिवृताव्याकृत नहीं है, कारिका कहती है कि यह उनसे अन्य हैं । चार क्लेश और पाँच सर्वत्रग मनस् से सदा संप्रयुक्त होते हैं । मनस् पाँच विनियत, ग्यारह कुशल, उपक्लेश और चार अनियत से संप्रयुक्त नहीं होता । दूसरे मत के अनुसार कारिका का यह अर्थ है कि मनस् से सहगत चार क्लेश, अन्य ( अर्थात् उपक्लेश ) और स्पर्शादि पंच होते हैं । तीसरे मत के अनुसार यह दस उपक्लेशों से संप्रयुक्त होता है। धर्मपाल के अनुसार सर्वक्लिष्ट चित्त पाठ उपक्लेशों से संप्रयुक्त होता है । अतः मनम् स्पर्शादि पांच सर्वत्रंग, चार मूल क्लेश, अाठ उअक्लेश और एक प्रज्ञा से युक्त होता है । किन वेदनाओं से क्लिष्ट मनस संप्रयुक्त होता है ? एक मत के अनुसार यह केवल सौमनस्य से संप्रयुक्त होता है, क्योंकि यह श्रालय को आत्मवत् अवधारित करता है और उसके लिए, सौमनस्य और प्रेम का उत्राद करता है । दूसरे मत के अनुमार मनस् चार वेदनात्रों से यथायोग मंप्रयुक्त होना है। दुर्गति में दौर्मनस्य से, मनुष्यगति, कामधातु के देवों की गति में, प्रथम-द्वितीय ध्यानभूमि के देवों में मौमनस्य से, तृतीय ध्यान-भूमि के देवों में सुखावेदना से, इमसे ऊर्ध्व उपेक्षा-वेदना से मनस् संप्रयुक्त होता है। तीसरा मत है जिसके अनुसार मनम् सदा से स्वरसेन एकजातीय प्रवर्तित होता है। यह अविकारी है। अतः यह उन वेदनात्रों से संप्रयुक्त नहीं है जो विकारशील हैं। अतः यह केवल उपेक्षा-वेदना से संप्रयुक्त है। यदि इस विषय में प्रालय से भेद निर्दिष्ट करना होता तो कारिका में ऐसा उक्त होता । मनस् के चैत्त निवृतान्याकृत हैं। मनस् से संप्रयुक्त चार क्लेश क्लिष्ट धर्म है। यह मार्ग में अन्तराय है, अतः यह निवृत है । यह न कुशल हैं, न अकुशल, अतः अन्याकृत हैं । मनस् से संप्रयुक्त क्लेशों का प्राश्रय सूक्ष्म है, उनका प्रवर्तन स्वरसेन होता है। अतः यह अव्याकृत हैं। मनस के चैत्तों की कौन-सी भूमि है । जब अटम विज्ञान की उत्पत्ति कामधातु में होती है तो मनस् से संप्रयुक्त चैत्त ( यथा श्रात्मदृष्टि ) कामास होते है, और इसी प्रकार यावा ममा मकना चाहिये । यह स्वरसेन प्रवर्तित होते हैं, और सदा स्वभूमि के अालय-विज्ञान में आलंबन बनाते हैं। यह अन्य भूमि के धर्मों को कभी बालंबन नहीं बना । बालप-विज्ञान में प्रत्येक भूमि के बीज है, किन्तु चब