पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/५६०

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चौद-पदान यह किसी भूमि के कर्मों का विपाक होता है तो कहा जाता है कि यह भूमिविशेष में उत्पन्न हुना है । मनस् प्रालय में प्रतिबद्ध होता है। अतः इसे श्रालय-विज्ञानमय कहते हैं । अथवा मनस् उस भूमि के क्लेशों से बद्ध होता है जहाँ प्रालय की उत्पत्ति होती है । श्राभय-परावृत्ति होने पर मनस् भूमियों से वियुक्त होता है। यदि यह क्लिष्ट मनस् कुशल-क्लिष्ट-अन्याकृत अवस्थाओं में विशेष रूप से प्रवर्तित होता है तो उसकी निवृत्ति नहीं होती। यदि मनस् की निवृत्ति नहीं होती तो मोक्ष कहाँ से होगा ? मोक्ष का अभाव नहीं है, क्योंकि अईत के क्लिष्ट मनस नहीं होता। उसने अशेष क्लेश का प्रहाण किया है। मनस् से संप्रयुक्त क्लेश सहज होते हैं । अतः दर्शन-मार्ग से उनका ( बीज रूप में ) प्रहाण या उपच्छेद नहीं होता, क्योंकि इनका स्वरसेन उत्पाद होता है। क्लिष्ट होने के कारण यह अश्य भी नहीं है। इन क्लेशों के बीज जो सक्षम है तभी महीण होते हैं, जब भावाग्रिक क्लेश-बीज सकृत् प्रहीण होते हैं, तब योगी अर्हत् होता है और क्लिष्ट मनस् का प्रहाण होता है । अर्हत् में वह बोधिसत्व भी संग्रहीत है, जो दो यानों के अशैक्ष होने के पश्चात् योधिसत्व के गोत्र में प्रवेश करते हैं। निरोध-समापत्ति की अवस्था में भी क्लिष्ट मनस् निरुद्ध होता है । यह अवस्था शान्त और निर्वाण सहश होती है। अतः क्लिष्ट मनस् उस समय निरुद्ध होता है, किन्तु मनस् के बीजों का विच्छेदक नहीं होता। जब योगी समापत्ति से व्युस्थित होता है तब मनस् का पुनः प्रवर्तन होता है। लोकोत्तर-मार्ग में भी क्लिष्ट मनम् नहीं होता। लौकिक मार्ग से क्लिष्ट मनस् का प्रवर्तन होता है। किन्तु लोकोत्तर-मार्ग में नैरात्म्य दर्शन होता है जो प्रात्मग्राह का प्रतिपक्षी है। उस अवस्था में क्लिष्ट मनस् का प्रवर्तन नहीं हो सकता। अतः क्लिष्ट मनम् निरुद्ध होता है। उससे व्युस्थित होनेपर क्लिष्ट मनस् का पुनः उत्पाद होता है। अविना मग स्थिरमति के अनुसार मनस् अथवा ससम विज्ञान सदा क्लिष्ट होता है। अब क्लेशा- वरण का प्रभाव होता है तब मनस नहीं होता। वह अपने समर्थन में इन वचनों को उद्धृत करते हैं :-- १. मनस् सदा चार क्लेशों से संप्रयुक्त होता है ( विख्यापन, १ ), २. मनस् विज्ञान-संक्लेश का प्राश्रय है ( संग्रह, १), ३. मनस् का तीन अवस्थाओं में प्रभाव होता है। धर्मपाल कहते हैं कि चत्र मनस् क्लिष्ट नहीं रहता तब वह अपने स्वभाव में ( ससम विज्ञान ) अवस्थान करता है। वह कहते है कि स्थिरमति का मत प्रागम और युक्ति के विरुद्ध है।