पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/५६१

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अष्टादश अध्याय १.सूत्रवचन है कि एक लोकोत्तर मनस् है । २. अक्लिष्ट और क्लिष्ट मनोविज्ञान का एक सहभू और विशे। यानय होना चाहिये। ३. योगशास्त्र में कहा है कि श्रालय-विज्ञान का सदा एक विज्ञान के साथ प्रवर्तन होता है । यह विज्ञान मनस् है । यदि निरोध-समापत्ति में मनस् या सप्तम विज्ञान निरुद्ध होता है (स्थिरमति ) तो योगशास्त्र का यह वचन अयथार्थ होगा, क्योंकि उस अवस्था में श्रालय- विज्ञान होगा और उसके साथ दूसरा विज्ञान (मनम् ) न होगा। ४. योगशास्त्र में कहा है कि क्लिष्ट मनस् अर्हत की अवस्था में नहीं होता । किन्तु इससे यह परिणाम न निकालिये कि इस अवस्था में सप्तम विज्ञान का अभाव होता है। शास्त्र यह भी कहता है कि अर्हत् की अवस्था में ग्रालय-विज्ञान का त्याग होता है, किन्तु श्राप मानते हैं कि अर्हत् में अष्टम विज्ञान होता है । ५. अलंकार और संग्रह में उक्त है कि सप्तम विज्ञान की परावृत्ति से समता-ज्ञान की प्राप्ति होती है। अन्य झानों के समान इस ज्ञान का भी एक तत्संप्रयुक्त अनासव विज्ञान श्राश्रय होना चाहिये । श्राश्रय के बिना आश्रित चैत्त नहीं होता । अतः अनास्सव सप्तम विज्ञान के अमाव में मनता ज्ञान का अभाव होगा । वस्तुतः यह नहीं माना जा सकता कि यह ज्ञान प्रथम छः विज्ञानों पर आश्रित है, क्योंकि यह अादर्श ज्ञान की नरद निरन्तर रहता है । ६.यदि अशैक्ष की अवस्था में सप्तम विज्ञान का अभाव है तो अष्टम विज्ञान का कोई सहभू श्राश्रय नहीं होगा। किन्तु विज्ञान होने से इसका ऐसा आश्रय होना चाहिये। ७. श्राप यह मानते हैं कि जिस सत्व ने पुद्गल-नैरात्म्य का साक्षात्कार नहीं किया है, उसमें श्रामग्राह सदा रहता है। किन्तु जबतक धर्म-नैरात्म्य का साक्षात्कार नहीं होता, तबतक धर्मग्राह भी रहता है। यदि सप्तम विज्ञान निरुद्ध होता है तो इस धर्मग्राह का कौन-सा विज्ञान ग्राश्रय होगा ? क्या अष्टम विज्ञान होगा ? यह असंभव है क्योंकि अष्टम विज्ञान प्रज्ञा से रहित है । हमारा निश्चय है कि यानद्वय के प्रार्यों में मनम् का सदा प्रवर्तन होता है, क्योंकि उन्होंने धर्म-नैरात्म्य का साक्षात्कार नहीं किया है। ८. योगशास्त्र (५१, संग्रह) एक सप्तम विज्ञान के अस्तित्व की आवश्यकता को व्यवस्थित करता है, जो कि षष्ठ का आश्रय है। यदि लोकोत्तर-मार्ग के उत्पाद के समय या अशैक्ष की अवस्था में सप्तम विज्ञान का अभाव है, तो योगशास्त्र की युक्ति में द्विविध दोष होगा। श्रतः पूर्वोक्त तीन अवस्थाओं में एक अक्लिष्ट मनस् रहता है । जिन बचनों में यह कहा गया है कि वहाँ मनस् का अभाव है, वह क्लिष्ट मन स् का ही विचार करते हैं । यथा श्रालय-विज्ञान का चार अवस्थाओं में प्रभाव होता है, किन्तु अष्टम विज्ञान का वहां अभाव नहीं होता। मनस् और सप्तम विज्ञान के तीन विशेष हैं। यह पुद्गल-दृष्टि से या धर्मदृष्टि से या समता-जान से संप्रयुक्त होता है। ६०