पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/५६२

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809 चौब-धर्म दर्शन अब पुद्गल-दृष्टि होती है तब धर्म-दृष्टि होती है, क्योंकि श्रामग्राह धर्मग्राह पर आश्रित है। यानद्वय के श्रार्य अात्मप्राह का विच्छेद करते हैं, किन्तु यह धर्मनैरात्म्य का साक्षात्कार नहीं करते । तथागत का मनस् सदा समता-ज्ञान से संप्रयुक्त होता है । बोधिसत्व का मनस् भी तब समता-ज्ञान से संप्रयुक्त होता है, जब वह दर्शन-मार्ग का अभ्यास करते हैं या जब वह भावना-मार्ग में धर्म-शुन्यता-ज्ञान या उसके फल का अभ्यास करते हैं। ममस् की संज्ञा मनस् मन्यनात्मक है । लंकावतार में कहा है-"मनसा मन्यते पुनः" [१०४००] । सर्वास्तिवादिन् कहते हैं कि अतीत मनोविज्ञान की संज्ञा मनस् है । पष्ठ श्राश्रय की प्रसिद्धि के लिए ऐसा है । उनके अनुसार जब यह प्रवृत्त होता है तब उसे मनोविज्ञान कहते हैं। किन्तु यह कैसे माना जा सकता है कि अतीत और क्रियाहीन होनेपर इसे मनस् की संज्ञा दी जा सकती है। श्रतः छः विज्ञानों से अन्य एक सप्तम विज्ञान है जिसकी सदा मन्यना क्रिया होती है, और जिसे 'मनस्' कहते हैं । मनस् के दो कार्य है । यह मन्यना करता है, और अाश्रय का काम देता है। विज्ञान का तृतीय परिणाम-पड् विज्ञान अब हम विशान के तृतीय परिणाम का वर्णन करेंगे। यह पविध है। यह विषय की उपलब्धि है। विषय छः प्रकार के हैं -रूप, शब्द, गन्ध, स्म, स्पष्टव्य, धर्म । इनकी उपलब्धि विज्ञान कहलाती है । यह छः है--चतुर्विज्ञानादि । यह पविज्ञान ( विज्ञानकाय ) मनस् पर श्राश्रित हैं। यह उनका समनन्तर प्रत्यय है। किन्तु केवल पष्ठ विज्ञान को ही मनोविज्ञान कहते हैं, क्योंकि मनस इसका विशेष प्राश्रय है। इसी प्रकार अन्य विज्ञानों को उनके विशेष श्राश्रय के अनुसार चक्षुर्विज्ञानादि कहते हैं। यह विज्ञान कुशल, अकुशल, श्रव्याकृत होते हैं। अलोभ-अद्वेष-अमोह से संप्रयुक्त कुशल विज्ञान है । लोभ-द्वेष-मोह से संप्रयुक्त अकुशल हैं। जो न कुशल है, न अकुशल, वह अन्याकृत हैं। इन्हें 'अद्वया', 'अनुभया' भी कहते हैं । पड्विज्ञान का चैतसिकों से संप्रयोग होता है । पड्विज्ञान सर्वत्रग, विनिगत, कुशल चैत्तों से, क्लेश और उपक्लेश से, अनियतों से, तीन वेदनाओं से संप्रयुक्त होते हैं । एक प्रश्न भूगनाथना का है । यह दिखाता है कि विज्ञानवाद माध्यमिक से कितनी दूर चला गया है । हमका मामानार्थक दूसरा शब्द धर्मता ( धर्मों का स्वभाव ) है। किन्तु क्योंकि वस्तुतः यशों का म्यभार शन्य ( वस्तु शून्य ) है, इमलिए. तथता का समानवाची दूसरा शब्द शून्यता · । गत Asie !! और वन्यस्थ है । नागार्जन ने इसका व्याख्यान किया है।