पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/५८१

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ऊनविंश अन्याय रूप से चतुरादि श्रायतनों का स्वतः उत्पाद माना नहीं जाता। ऐसी अवस्था में अनुमान का आधार ही प्रसिद्ध है। यदि उत्पत्ति-प्रतिषेध के साथ 'परमार्थ का योग करें और अर्थ करें कि सांवृत चतुरादि की परमार्थतः उत्पत्ति नहीं है, तो यह युक्त न होगा, क्योंकि परपद चक्षुरादि को वस्तुसत् मानता है। उसे माध्यमिक की प्रति-सत्ता इष्ट नहीं है। इस प्रकार श्राधार असिद्ध होगा और अनुमान पक्ष-दोष से ग्रस्त होगा। चन्द्रकीर्ति यहाँ यह उद्भावन करते हैं कि 'शब्द अनित्य हैं' इत्यादि पक्ष को सिद्ध करने के लिए धर्म-सामान्य (अनित्यता-साधारण ) और धर्मो-सामान्य (शब्द-साधारण) का ग्रहण करना चाहिये । अन्यथा विशेष ग्रहण करने से अनुमान-अनुमेय व्यवहार सदा के लिए समाप्त हो जायगा 1 शब्द और अनित्यता इस पक्ष और साध्य में वादियों में । यह विप्रतिपत्ति होगी कि यहाँ किस शब्द का ग्रहण करें। बौद्ध-संमत चातुर्महाभौतिक शब्द लें तो वह अन्य मत में अमिद्ध होगा। यदि श्राकाश-गुणक शब्द लें तो वह बौद्ध-मत में प्रसिद्ध होगा। इसी प्रकार 'अनित्यता' से वैशेषिकादि संमत 'सहेतुक विनाश' अर्थ लं, तो वह बौद्ध-मत में प्रसिद्ध है। बौद्ध-संमत निहतुक विनाश' अर्थ करें तो पर को असिद्ध होगा। ऐसी अवस्था में अनुमान के लिए धर्म-धर्मी सामान्यमात्र का ग्रहण करना चाहिये, जिससे वादियों में तस्यकथा चल सके । अतः प्रकृत स्थल में भी परमार्थ विशेषण का उत्मर्ग करके धीमात्र का ग्रहण करना चाहिये। किन्तु विशेष ध्यान देने पर यह तर्कसंमत मध्य-मार्ग भी दोपपूर्ण ठहरता है, क्योंकि जब उत्पाद-प्रतिषेध को साध्य बताते हैं, तब उस साध्य-धर्म का धी (आध्यात्मिक आयतन) अपने मिथ्या रूप को प्रकट कर देता है; क्योकि यह सत्व के विपर्यास मात्र से प्रासादित है। इस प्रकार उसका धर्मत्व ही च्युत हो जाता है। इस प्रकार इस अनुमान में धमी की उपलब्धि संभव नहीं होगी, क्योंकि अविपरीत ज्ञानवाले विद्वान् को विपर्यस्त बोध नहीं होगा, और इसके बिना चक्षुरादि का सांवृतधर्मित सिद्ध गा। शून्यता-अशन्यतावादियों में दृष्टान्त-साम्य भी नहीं होगा, क्योकि उनके मत में पूर्वोक्त रोति से चक्षुरादि सामान्य न सांवृत सिद्ध होगा और न पारमार्थिक । इसी प्रकार मामिक प्रतिवादी के या अपने अनुमान के समस्त पर, हेतु अादि की श्रसिद्धि निश्चित करता है । माध्यमिक अनेक प्रकार से यह मिद्ध कर देता है कि सभी अनुमान पंक्ष-दोष, हेतु-दोप, सिद्धार्थ, विरुद्धार्थ श्रादि दोषों से ग्रस्त हो जाते हैं। जैसे---हीनयानी कहें कि श्राध्यात्मिक अायतनों के उ.पादक हेतु हैं, क्योंकि तथागत ने उनका निर्देश किया है। जैसे तथागत निर्दिष्ट शान्त निर्वाण स्वीकृत है। इस अनुमान में माध्यमिक पूछेगा---'तथागत का निर्देश' इस हेतु में तथागत का निर्देश सांकृत है या परमार्थ । प्रथम पक्ष के सांवृत होने के हेतु की प्रसिद्धार्थता स्पष्ट है । द्वितीय पक्ष इमलि असिद्ध है कि परमार्थ में निर्षि-निर्वतक- भाव ( कार्यकारणभाव ) अमिद्ध है।