पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/५८६

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वोड-धर्म-दर्शन में भी न होगा, जो अतीत-अनागत-प्रत्युत्पत्र में नहीं है उसका कोई स्वभाव नहीं है, जिसका कोई स्वमाव नहीं है उसका उत्पाद नहीं, जिसका उत्पाद नहीं उसका निरोध नहीं । यहाँ प्राचार्य चन्द्रकीर्ति विभिन्न प्राचीन सूत्रों के प्रमाणों को उद्धृत कर सिद्ध करते हैं कि पदार्थ यद्यपि मृषा-स्वभाव है, किन्तु वे संक्लेश (क्लेश) और व्यवदान ( मोक्ष ) के निमित्त होते हैं। पहले अविद्या-संस्कारनामरूपादि देशना की सांवृतिकता दिखाई गई है। अब चन्द्रकीति संवृति का स्वरूप व्यवस्थान करते हैं। संवृति की व्यवस्था संवृति की सिद्धि इदंप्रत्यता-मात्र ('यह' बुद्धि जैसे-यह घट है, यह पट है; इत्यादि ) से होती है । इसलिए. माध्यमिक पूर्वोक्त स्वतः, परतः, उभयतः,अहेतुतः,इन पक्षों का अभ्युपगम नहीं करते । अन्यथा वह सस्वभाववाद में श्रापन होगें । 'इदं प्रत्ययता' के अभ्युपगम से हेतु-फल की अत्योन्यापेक्षता सिद्ध होती है। इससे सांवृतिक अवस्था में भी स्वभाववाद निरस्त होता है । वस्तुतः पदार्थों के संबन्ध में मगवान् का यह संकेत कि- "इसके होने पर यह होता है, इसके उत्पाद से यह उत्पन्न होता है" सांवृतिक निःस्वभावता को प्रकट करता है। वादी प्रश्न करता है कि 'भाव अनुपत्पन्न हैं' श्रापका यह निश्चय प्रमाणों से जन्य है या अप्रमाणन है ? यदि प्रमाणज है, तो प्रमाणों की संख्या और लक्षण बतायें और यह बताइये कि उनके विश्य क्या क्या है ? पुनः चे स्वतः उत्पन्न होते हैं, या परतः; उभयतः अथवा अहेतुतः। अप्रमाणन पक्ष युक्त नहीं है, क्योंकि प्रमेय का अधिगम प्रमाणाधीन होता है । यदि प्रमाण नहीं है, तो अधिगम नहीं होगा; और अधिगम नहीं होगा, तो 'भाव अनुपन्न हैं। यह निश्चय नहीं होगा । पुनः अापके समान हम भी सर्व भावों की सस्वभावता के निश्चय पर दृढ़ क्यों न होंगे ? और जैसे श्राप सर्व भावों की अनुत्पन्नता पर दृढ़ है, वैसे हम सर्व भाव की उत्पत्ति के वाद को सुस्थिर क्यों न करेंगे ? आपको एक यह भी कठिनाई होगी कि आपका स्वयं अनिश्चित पक्ष परपक्ष का प्रत्यायन नहीं कर सकता । ऐसी अवस्था में मध्यमक-शास्त्र का प्रारंभ करना व्यर्य होगा, और हमारा पक्ष ( सर्व भावों की सत्ता ) अप्रतिषिद्ध होगी। चन्द्रकीर्ति समाधान करते हैं कि हमारा कोई निश्चय नहीं है, जिसके प्रमाण अप्रमाएज होने का श्राप प्रश्न उठावें । हमारे पक्ष में कोई अनिश्चय भी नहीं है, जिसकी अपेक्षा से प्रति- पक्ष में निश्चय खड़ा हो। संबन्धी से निरपेक्ष होकर निश्चय या अनिश्चय खड़े नहीं हो सकते । माध्यमिक पक्ष में निश्चय का अभाव है,अत: उसकी प्रसिद्धि के लिए प्रमाण की संख्या, लक्षण, विश्य श्रादि किसी के भी संबन्ध में विप्रतिपत्तियों के निरास का भार माध्यमिक पर नहीं है। हम पक्ष-चतुष्टय( स्वतः, परतः, उभयतः, अहेतुतः उत्पाद ) वाद का जो निश्चय पूर्वक खंडन करते हैं, वह भी लोक-प्रसिद्ध उपपत्तियों से ही; श्रार्य की परमार्थ-दृष्टि से नहीं । इसका अभिप्राय यह नहीं है कि पार्यों के पास उपपत्तियाँ नहीं है, बल्कि यह कि आर्य तूष्पीभाव को