पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/५९२

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५०४ दोद-धर्म-दर्शन 'बिया से उत्पाद का खंडन 'क्रिया से उत्पाद का सिद्धान्त माननेवाला वादी कहता है कि चक्षु-रूप आदि प्रत्यय ( हेतु) विज्ञान को साक्षात् उत्पन्न नहीं करते, किन्तु विज्ञान की जनक क्रिया को निष्पन्न करते है। इसीलिए. वे 'प्रत्यय' ('कार्य प्रति अयन्ते गच्छन्ति' कार्योत्पाद के लिए व्यापूत ) कहलाते हैं। इस प्रकार प्रत्यय से युक्त विज्ञान को जनिका क्रिया ही विज्ञान को उत्पन्न करती है, प्रत्यय नहीं। प्राचार्य कहते हैं कि पहले क्रिया सिद्ध हो तब उसके प्रत्यय से युक्त होने का तथा उससे विधान के उत्पन्न होने का प्रश्न उपस्थित हो; किन्तु किसी प्रकार क्रिया सिद्ध नहीं होती। पूर्वपक्षी को यह बताना होगा कि क्रिया 'उत्पन्न हुए विज्ञान' ( अतीत ) में मानी जाय या 'उत्पन्न होने वाले' (अनागत ) में, या उत्पन्न हो रहे ( वर्तमान ) विज्ञान में । जात का जन्म व्यर्थ है, और अजात में कर्ता के बिना जनन-क्रिया नहीं होगी; जात और अजात से अतिरिक्त जायमान की सत्ता नहीं है। इस प्रकार तीनों कालों में जनन-क्रिया असंभव है । अतः क्रिया- मात्र प्रसिद्ध है। यदि क्रिया प्रत्यय से युक्त न हो तो निर्हेतुक होगी। अतः क्रिया पदार्थ-जनक नहीं होगी। यदि क्रिया नहीं है, तो क्रिया से रहित प्रत्यय भी जनक न होंगे। एक प्रश्न है कि चक्षुरादि प्रत्ययों की अपेक्षा करके विज्ञानादि भाव उत्पन्न होते हैं । इसलिए चतुरादि की प्रत्ययता स्पष्ट है। उनसे विज्ञानादि प्रत्यय उत्पन्न होंगे। प्राचार्य कहते है कि बात तो यह है कि चतुरादि विज्ञान नामक कार्य उत्पन्न करने के पूर्व अप्रत्यय है, अतः अप्रत्ययों से विज्ञान (प्रत्यय) की उत्पत्ति नहीं होगी। यहां वादी को यह भी बताना होगा कि उसके अनुसार चक्षुरादि विज्ञान के प्रत्यय है तो वह सत् विज्ञान के हैं या असत् के। दोनों प्रकार अयुक्त हैं। क्योंकि अविद्यमान अर्थ की प्रत्ययता नहीं होती और सत् को प्रत्ययता से कोई प्रयोजन नहीं है। बादी कहता है कि आप हेतु का लक्षण निर्वर्तकत्व ( उत्पादकत्व ) करते हैं। किन्तु श्राप मत में जब हेतुओं का अभाव है तो उसका लक्षण कैसे होगा। प्राचार्य कहते हैं कि उपाद्य धर्म यदि उत्पन्न हों, तो उत्पादक हेतु उन्हें उत्पन्न करें | किन्तु धर्म मृत् या असत् है, अतः उत्पाद्य नहीं है । भासम्बनादि प्रमों का खंडन-अन्त में प्राचार्य श्रालंबनादि प्रत्ययों का खण्डन करते हैं । चित्त-वैत्त जिस रूपादि अाग्लंबन में उत्पन्न होते हैं, वह श्रालंबन-प्रत्यय है । प्रश्न है कि बालंबन-प्रत्यय विद्यमान चित्त-चैती का होता है, या अविद्यमान का ? विद्यमान का श्रालंबन-प्रत्यय से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होगा, क्योंकि पात्रलंन के पूर्व भी वह विद्यमान है। अविद्यमान का श्रालंबन से योग नहीं होगा। इसी प्रकार कारण के अव्यवहित निरोध से जो कार्योपाद-प्रत्यय है, वह समनन्तर- प्रत्यय है। किन्तु अंकुरादि-कार्य यदि अनुत्पन्न है, तो कारण बीजादि का निरोध भी अनुपपन्न है। ऐसी अवस्था में जब कारण-निरोध नहीं है, तो अंकुर का समनन्तर-प्रत्यय कौन होगा ? कार्य अनुत्पन्न हो फिर भी यदि बीजनिरोध मानें तो अभावीभूत बीज अंकुर का हेतु कैसे होगा और बीज-निरोध का कारण क्या होगा!