पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/५९३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ऊनर्विक्षनभ्याय जिम ( कारण ) के होने पर जो ( कार्य ) होता है, वह उसका अधिपति-प्रत्यय है। किन्तु समस्त भाव प्रतीत्यसमुत्पन्न हैं, अतः स्वभाव से रहित है । ऐसी अवस्था में यस्मिन् सति' (जिसके होने पर ) से बोधित कारणता कहाँ मिलेगी और यदिद' ( जो होता है ) से बोधित कार्यता कहाँ से आयेगी। फल की दृष्टि से भी हेतु नहीं है, क्योंकि व्यस्त तन्तु-तुरी-वेमादि में पट उपलब्ध नहीं होता । यदि उपलब्ध होगा तो तन्त-तुरी-वेमादि कारणों की बहुलता से कार्य की बहुलता होगी। समुदित तत्वादि में भी पट नहीं है, क्योंकि प्रत्येक अवयवों में पट नहीं है । इस प्रकार फल उपलब्ध नहीं है, अतः प्रत्यय भी स्वभावतः नहीं हैं । इस प्रकार हेतुवाद अयुक्त है। गति, गन्ता और गन्तव्य का निषेध मध्यमक-शास्त्र का अभिधेयार्थ अनिरोधादि बाट विशेषणों से युक्त प्रतीत्यसमुत्पाद की देशना है । उसकी सिद्धि, भावों के उत्पाद-प्रतिषेध से की जा चुकी है, किन्तु भावों का अध्वगत (कालिक) अागम-निर्गम लोक में सिद्ध है, जिससे भावों की निःस्वभावता पुनः संदिग्ध हो जाती है। इस संदेह की निवृत्ति करना और उसके द्वारा आगम-निर्गम से रहित प्रतीत्य- समुत्पाद की सिद्धि करना अपेक्षित है। इसके लिए नागार्जुन एक स्वतन्त्र अध्याय में अनेक उपपत्तियों से गमनागमन क्रिया का प्रतिषेध करते हैं । गत, भगत भोर गम्यमान मध्य में गति का निषेध गमन क्रिया की सिद्धि 'गत' 'अगत' या 'गम्यमान' अध्ध में ही संभव है, जो परीक्षा से सर्वथा अयुक्त है। 'गत' श्रध्व का गमन इमलिए. असिद्ध है कि वह गमन क्रिया से उपरत श्रध्व है । अतः वर्तमान कालिक गमन क्रिया से उसका संबन्ध कैसे हो सकता है ? इसलिए गत का गमन ठीक नहीं है ( गतं न गम्यते ) 'प्रगत' श्रध्व का भी गमन उपपन्न नहीं है, क्योंकि जिसमें गमन-क्रिया ( गमन ) अनुत्पन्न है, वह 'अगत' अध्व है । 'अगत' अनागत-स्वरूप है, अनागत के साथ वर्तमान गमन- क्रिया का अत्यन्त भेद है। अतः श्रगत का गमन भी युक्त नहीं है ( अगतं नैव गम्यते)। यदि अगत का गमन मानें तो वह अवश्य ही अगत नहीं रहेगा। इसी प्रकार गम्यमान का भी गमन नहीं बनेगा | गन्ता ने जिस देश को अतिक्रान्त किया है, वह 'गत' देश है; और जिसे अतिक्रान्त नहीं किया वह 'अगत' देश है। इन दो से अतिरिक्त कौन-सा तीसरा देश है, जिसे गम्यमान देश कहा जाय और उसका गमन क्रिया से संबन्ध जोड़ा जाय। गमन क्रिया से युक्त (गच्छत् ) चैत्रादि के चरण से आक्रान्त देश की संज्ञा भी गम्यमान' नहीं हो सकती। चरण परमाणु से व्यतिरिक्त नहीं है। अंगुलि के अप्रभाग का परमाणु पूर्व देश है, जो गत' अध्व के अन्तर्गत है। पाणि-प्रदेश स्थित चरम परमाणु, का जो उत्तर देश