पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/५९४

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बौद-धर्मधर्शन है, वह अगत-अव के अन्तर्गत है। चरण के पूर्व देश और उत्तर देश की तरह प्रत्येक सूक्ष्म परमाणु का भी पूर्व-अवर दिग-भाग है, जिसका गत-अगत अध्व में अन्तर्भाव होगा । इस प्रकार गतागत विनिर्मुक्त गम्यमान अध का गमन सर्वथा असिद्ध है। 'गम्यमान' के गमन के खंडन के लिए नागार्जुन अनेक पूर्वपक्ष उद्धृत कर खंडन करते हैं- गम्यमान में ही चेष्टा हो सकती है, और जहाँ चेष्टा संभव होगी वहीं गति होगी। चरण का उक्षेप-परिक्षेप चेष्टा है । वह गत, अगत अध्व में संभव नहीं है, अतः गम्यमान में ही गति हो सकती है, क्योंकि जिसकी गति उपलब्ध है, वह गम्यमान है। नागार्जुन कहते हैं कि वादी गमन-क्रिया के योग से ही गम्यमान का व्यपदेश करते हैं, किन्तु गमि-क्रिया एक है। ऐसी अवस्था में 'गम्यमान के गमन' की सिद्धि के लिए गमि-क्रिया का 'गम्यमान' के साथ पुनः संबन्ध कैसे होगा १ (गम्यमानस्य गमनं कथं नामोपयुज्यते); क्योंकि गम्यमान में एक गमि-क्रिया का समावेश ठीक है, द्वितीय के लिए अवकाश नहीं है । अन्यथा 'गम्यमान' में गमन-द्वय की आपत्ति होगी। यदि गम्यमान व्यपदेश में गमि-क्रिया का संबन्ध न माने और 'गम्यते' के द्वारा गम्य- मान अध्व की क्रिया का संबन्ध माने तो इस पन में गति के बिना ही गम्यमान की सत्ता माननी पड़ेगी। तब गमन गति रहित सिद्ध होगा। यदि गम्यमान अध्व और 'गम्यते' क्रिया दोनो में क्रिया का संबन्ध मान फिर भी अधिकरणमूत और प्राधेयभूत गमनद्वय की आपत्ति होगी। नागार्जुन कहते हैं गमन-द्वय को स्वीकार करने के लिए. दो गन्तात्रों को भी स्वीकार करना पड़ेगा, क्योंकि गन्ता का तिरस्कार कर गमन उपपन्न नहीं हो सकते, और जिम गमन का देवदत्त कर्ता है, उनमें द्वितीय कर्ता का अवकाश नहीं है । इस प्रकार कतृ-द्वय का अभाव गमन-द्वय का अभाव सिद्ध करता है। पूर्वपक्षी कहता है कि जैसे एक देवदत्त कर्ता में बोलना और देखना श्रादि अनेक क्रियाएँ देखी जाती हैं, उसी तरह एक गन्ता में क्रिया-द्वय क्यों न हांगे ? नहीं होगा, क्योंकि कारक शक्ति है,द्रव्य नहीं । यद्यपि द्रव्य के एक होने पर भी क्रिया-भेद से शक्ति का भेद होता, किन्तु एक ममान दो क्रियाओं का कारक एक देशिक नहीं देखा जाता। अतः गन्ता का गमन- द्वय नहीं होता। गमनाभव गम्ता का निषेध श्राचार्य नागार्जुन गमनाश्रय गन्ता का भी निषेध करते हैं । तर्क यह है कि जब गन्ता के बिना निराश्रय गमन श्रमत् है, तब गमन के असत् होने पर गन्ता की सिद्धि कैसे होगी। गन्ता की स्वरूप-निष्पत्ति हो गमन-क्रिया के काने से है । इसलिए, 'गन्ता का गमन' यह ठीक नहीं होगा, क्योंकि गन्ता गच्छति' इस वाक्य में एक ही गमन-किया है, जिसमें गच्छति' व्यपदेश होता है । इसके अतिरिक्त दूसरी कोई गमि-किया नहीं है । द्वितीय गमि-क्रिया के बिना 'गन्ता' गन्ता नहीं होगा । तब 'गन्ता गच्छति' यह व्यपदेश कैसे बनेगा ? उक्त व्यपदेश की