पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/५९९

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ऊनविंश अध्याय वादी कहता है कि लक्ष्य-लक्षण नहीं है, परन्तु अाकाश है। यह प्रयुक्त है, क्योंकि लक्ष्य लक्षण विनिमुक्त कोई भाव नहीं होगा । जब लक्ष्य-लक्षण निमुक्त भाव नहीं होता, तो भाव की विद्यमानता के आधार पर श्राभारा श्रभाव पदार्थ भी कैसे होगा । भावाभाव से अतिरिक्त कोई तृतीय पदार्थ नहीं है, जो आकाश हो । जत्र लक्ष्य-लक्षण का अभाव है, तभी लक्ष्य-लक्षण रहित आकाश की सत्ता अाकाश-कुसुम के समान अमिद्ध होती है । इमी प्रकार पृथिव्यादि पांच धातुओं का भी अभाव है। रागादि क्लेशों का निषेध वादी कहता है कि माध्यमिक को स्कन्ध, श्रायतन और धातु की सत्ता स्वीकार करनी पड़ेगी, अन्यथा उसके श्राश्रित क्लेशों की उपलब्धि नहीं होगी। रागादि क्लेश संक्लेश- निबन्धन है । भगवान् ने कहा है-हे भिन्तुनो ! बाल अश्रुतवान् पृथग्जन प्राप्ति में अनु- पतित हो, चक्षु से रूप को देख कर उसमें सौमनस्य का अभिनिवेश करता है, अभिनिविष्ट होकर राग उत्पन्न करता है, राग से रक्त होकर रागज, द्वेषज, मोहज कर्मों का काय, वाक् और मन से अभिमस्कार करता है। माध्यमिक कहते है कि हमारे मत में रागादि क्लेश नहीं है। इसलिए, स्कन्ध, अायतन और धातु भी नहीं है। मैं पूछता हूँ कि पृथग्जनों के द्वारा जिस राग की कल्पना होती है, वह रक्त-नर में या अरक्त नर में ? उभय युक्त नहीं है। रक्त रागाश्रय है । राग के पूर्व भी यदि रक्त है, तो वह अवश्य राग-रहित होगा। जब राग-रहितता है, तभी उसका प्रतिपक्ष राग मिद्ध होता है, किन्तु राग-रहित का होना संभव नहीं है, अन्यथा अरक्त अर्हत् को राग होगा । रक्त की सत्ता में राग नहीं होगा, अन्यथा राग निराश्रय होगा। यदि वादी को रक्त की सत्ता-अमीष्ट है, तो उसे बताना होगा कि रक्त की कल्पना राग में है या अराग में ? उभय अनुपपन है । राग में रक्त की कल्पना तो इसलिए नहीं बनेगी कि एक में रागानुत्पत्ति होगी, क्योंकि पूर्व के समान कहेंगे कि रक्त से पूर्व यदि राग है, तो वह अवश्य रक्त-तिरस्कृत है। वादी कहता है कि ये दोष राग-रक्त का पौर्वापर्य मानने से हैं। इसलिए मैं इनका सहो- अव मानता हूँ | चित्त सहभूत राग से चित्त रंजित होता है, वही उसकी रक्तता है। माध्यमिक कहते है कि इस स्थिति में राग-रक्त परस्पर निरपेक्ष होंगे। पुनश्च, राग और रक्त का सहमाव इनके एकत्व में है या पृथकत्व में ? एकत्व में सह व नहीं होगा, क्योंकि राग उसीसे सहभाव का क्या अर्थ होगा ? पृथक् पदार्थों का भी सहभाव सर्वथा असिद्ध है। पुनः एकत्व में सहभाव हो तो विना सहत्वके ही सहभाव होगा। इसी प्रकार पृथक्त्व में सहभाव मानने पर भी बिना सहत्य के सर्वथा पृथक् गो-अश्वादि का सहभाव मानना पड़ेगा। पृथक्त्व मूलक सहभाव की सिद्धि के लिए राग-रक्त का पृथक्त्व सिद्ध होना चाहिये, जो प्रसिद्ध है। फिर यदि अव्यतिरिक का