पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/६००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चौब-धर्म-दर्शन उनका पृथक्त्व ही सिद्ध करना है, तो फिर उनके सहभाव की कल्पना क्यों करते हैं । पृथक्-पृथक् होने के कारण राग और रक्त की स्वरूप सिद्धि होगी, इसलिए यदि श्राप सहभाव चाहते हैं, तो पुनः सहभाव के लिए उनका पृथक्त्व मानना पड़ेगा और इस प्रकार इतरेतराभय दोष होगा । प्राचार्य कहते है कि राग-रक्त की सिदि न पौर्वापर्येण होगी और न सहभावेन । इसी प्रकार द्वेष-द्विष्ट, मोह-मूदादि की भी सिद्धि नहीं है। संस्कृत धर्मों का निषेध हीनयानी कहते हैं कि संस्कृत-स्वभाव पदार्थों ( स्कन्ध, आयतन, धातु) का सद्भाव मानना पड़ेगा, क्योंकि भगवान् ने कहा है--"भिक्षुश्रो ! संस्कृत के ये तीन संस्कृत-लक्षण है। मिश्रो ! संस्कृत का उत्पाद प्रशात है, व्यय और स्थित्यन्यथात्व भी प्रज्ञात है । अविद्यमान का जात्यादि-लक्षण संभव नहीं है, अतः संस्कृत धर्मों की सत्ता है। संस्कृत पापों के पक्षण का निषेध माध्यमिक कहते हैं कि स्कन्ध, आयतन, धातु अवश्य संस्कृत-स्वभाव के होंगे, यदि उनका संस्कृत-लक्षण ( जाति, व्यय, स्थित्यन्यथाल्व ) हो । प्रश्न है कि संस्कृत-लक्षण का उत्पाद स्वयं संस्कृत है या असंस्कृत ? यदि संस्कृत है, तो उसे त्रिलक्षणी होना चाहिये । त्रिलक्षणी- उत्पाद, स्थिति, और भंग का समाहार है, उससे सर्व संस्कृत धर्मों का अव्यभिचार ( निश्चित साहचर्य) है । यदि उत्पाद संस्कृत है, तो उसे भी त्रिलक्षणी होना चाहिये । किन्तु ऐसी स्थिति में वह संस्कृत-लक्षण नहीं रहेगा, अपि तु रूपादि के समान लक्ष्य होगा । इस दोष से बचने के लिए यदि उत्पाद को त्रिलक्षण नहीं माने, तो वह आकाशवत् असंस्कृत होगा। फिर असंस्कृत संस्कृत-लक्षण कैसे होगा। अपि च, उत्पादादि व्यस्त( पृथक् पृथक् ) संस्कृत-लक्षण हैं या सहभूत-समस्त ? उभय पक्ष उपपन्न नहीं है। मस्त पक्षण-वादी व्यस्तों से संस्कृत पदार्थों का लक्षण नहीं बना सकते, क्योंकि यदि उत्पाद काल में स्थिति और भंग न होंगे तो स्थिति और भंग से रहित श्राकाश के समान उत्पाद भी संस्कृत-लक्षणों से युक्त न होगा। इसी प्रकार स्थिति काल में उत्पाद और भंग न होंगे तो उनसे रहित पदार्थ की स्थिति भी नहीं होगी। क्योंकि उत्पाद और भंग से रहित कोई पदार्थ नहीं होता, अतः अविद्यमान वस्तु की किसी प्रकार स्थिति नहीं होगी। ऐसे पदार्थ की स्थिति मानें भी तो अनित्यता से उसका योग नहीं होगा, क्योंकि वह अनित्यता बिरोधी धर्म (स्थिति) से स्वयं आक्रान्त है । यदि पदार्थ को पहले शाश्वत माने, बाद में उसका अनित्यता से योग मानें, तो एक पदार्थ को ही शाश्वत, अशाश्वत, दोनों मानना पड़ेगा। पूर्वोक्त प्रणाली से भंग काल में स्थिति और उत्पाद न होगे, तो वह अनुत्पन्न एवं स्थिति रहित होगा । वक्ष पुष्प के समान होगा, और उसका विनाश होगा। समस्त अक्षय--उत्पादादि समस्त होकर भी पदार्थ के लक्षण न होंगे, क्योंकि एक चण में ही पदार्थ का जन्म, स्थिति और विनाश असंभव है।