पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/६०६

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चोर-धर्म-दर्शन वादी माध्यमिक से पूछता है कि भगवान् ने यह कहाँ अवधारित किया है कि 'भाव (पदार्य) नहीं है । सिद्धान्ती कहता है कि श्राप सस्वभाववादी हैं । इसलिए आप के पक्ष में सर्व भावों का अपवाद समावित है, किन्तु हम लोग समस्त भावों को प्रतीत्यसमुत्पन्न मानने के कारण उनका स्वभाव ही नहीं मानते, फिर अपवाद किसका करें । जब सर्व भाव निःस्वभाव है, तो पूर्वोक प्रकार से उनकी सिद्धि कथमपि नहीं हो सकती। सिद्धान्त में समस्त पदार्थ मरुमरीचिका के तुल्य हैं । लौकिक विपर्यास का अभ्युपगम करके ही इन सांवृत पदार्थों की 'इदं प्रत्ययता' (यह घट है, यह पट है, इत्यादि) प्रसिद्ध होती है। हमने अभी देखा है कि कर्म-निरपेक्ष कारक नहीं हो सकता और कारक-निरपेक्ष कर्म नहीं हो सकता । इसलिए ये परस्परापेक्ष हैं। जैसे कर्म और कारक की परस्परापेक्ष सिद्धि है, वैसे ही क्रियादि अन्य भावों की भी है। मावों की नि:वभावता की सिद्धि में वे ही हेतु होते हैं, जो उनकी सस्वभावता को सिद्ध करते हैं। भावों की सत्ता प्रापेक्षिक है, अतः निरपेक्ष उनकी सत्ता नहीं है। माध्यमिक मावों की इस सापेक्ष सिद्धि से ही समस्त पदार्थों के स्वभाव का निषेध करते हैं। पुद्गल के अस्तित्व का खंडन सोमितीय कहते हैं कि दर्शन, श्रवण, प्राणादि वेदनात्रों के उपादाताका अस्तित्व उपादानों के पूर्व अवश्य है, क्योकि अविद्यमान कारक की दर्शनादि क्रिया कदापि संभव नहीं हो सकती। सामितीय बौद्धकदेशी हैं, वह पुद्गलास्तित्ववाद में प्रतिपन्न है। सिद्धान्ती उसका खंडन करता है। कहता है कि दर्शनादि से पूर्व यदि पुद्गल की सत्ता है तो वह किससे शापित होगी । पुद्गल की प्राप्ति दर्शनादि से ही होती है। यदि दर्शनादि से पूर्व भी पुद्गल की सत्ता मानी जाय, तो वह दर्शनादि से निरपेक्ष होगी। इस प्रकार यदि दर्शनादि के बिना पुद्गल की सत्ता मानेंगे, तो बिना पुद्गल के भी दर्शनादि की सत्ता माननी पड़ेगी । अतः उपादान और उपादाता की सिद्धि परस्परापेक्ष है। उादाता के बिना दर्शनादिक आदान पृथक् सिद्ध हो तो वे निराश्रय और असत् होंगे। इसलिए उपादाता से आदान की पृथक् अवस्थिति नहीं है । सिद्धान्तो दर्शनादि एक एक के पूर्व या सकल के पूर्व प्रात्मा की सत्ता का खण्डन करता है। पूर्वपदी कहता है कि श्राप आत्मा का प्रतिषेध करें, परन्तु दर्शनादि का प्रतिषेध तो नहीं कर सकते; और दर्शनादि का अनात्म-स्वभाव घटादि से संबन्ध भी नहीं कर सकते । अतः 1. प्रदीप कार प्रतीयम् । प्रत बालरामः सिरिवारम् ।। (ER)