पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/६०८

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२२० नौर-धर्म-दर्शन जो जलाया जाता है ( इध्यते यत् तद् इन्धनम् ) वह वाह्य काष्ठादि है, उनका दग्धा अग्नि है। यदि आप दोनों की अभिन्नता स्वीकार करते हैं, तो कर्ता और कर्म की एकता स्वीकार करनी पड़ेगी । यह अनुचित होगा, क्योंकि घट और कुंभकार छेत्ता और छेत्तव्य का एकत्व नहीं है। इस दोष से बचने के लिए यदि अग्नि को इन्धन से भिन्न मानें, तब इन्धन-निरपेक्ष अग्नि की उपलन्धि माननी पड़ेगी; क्योंकि घट से पट अन्य है, अतः उनकी निरपेक्षता है, किन्तु अग्नि इन्धन से निरपेक्ष नहीं है, इसलिए श्रापका यह कथन युक्त नहीं है। यदि इन्धन से अग्नि को मिन मानें तो उसे नित्य प्रदीम मानना पड़ेगा और इन्धन के बिना भी अग्नि की प्रदीमि माननी पड़ेगी। फिर आपके पक्ष में अग्नि की प्राप्ति के लिए समस्त व्यापार व्यर्थ होगें और अग्नि में कर्तृत्व कर्म-निरपेद स्वीकार करना होगा। माध्यमिक अपनी उपयुक्त प्रतिज्ञाश्रों का समर्थन प्रबल युक्तियों से करता है। सिद्धान्ती कहता है कि अग्नि यदि प्रदीपन ( इन्धन ) से अन्य है, तो अवश्य वह उससे निरपेक्ष होगा, क्योंकि जो वस्तु जिससे अन्य होती है, वह उससे निरपेक्ष होती है । जैसे घट से निरपेक्ष पट । यदि अग्नि (इन्धन) प्रदीपन-निरपेक्ष है, तो वह प्रदीपन हेतु से नायमान भी नहीं है । दूसरी अापत्ति यह होगी कि प्रदीपन सापेक्ष अग्नि का प्रदीपन के अभाव में निर्वाण माना जाता है । अब जब कि यह प्रदीपन-निरपेक्ष है,तो उसका निर्वाण-प्रत्यय भी संभव न होगा । ऐसी अवस्था में अग्नि निस्त्र प्रदीप्त होगा। इतना ही नहीं, अग्नि को नित्य प्रदीप्त स्वीकार करने पर उसके लिए, उपादान, सधुक्षणादि कार्य भी व्यर्थ हांग । इस प्रकार अापके मत में अग्नि एक ऐसा कर्ता होगा, जो अकर्मक होगा। फिर जिसका कर्म विद्यमान न होगा उसमें कर्तृव भी बन्ध्यापुत्र के समान होगा। इसलिए इन्धन से अग्नि के अन्यत्व का पक्ष युक्त नहीं है। पूर्वपक्षी आक्षेप करता है कि अारका यह कथन कि अग्नि इन्धन से अन्य है, तो इन्धन के बिना भी उसका अस्तित्व स्वीकार करना होगा। यह युक्त नहीं है । अग्नि का अस्तित्व इन्धन से भिन्न होने पर भी इन्धन के बिना सिद्ध नहीं किया जा सकता । ज्वाला से परिंगत अर्थ इन्धन है, वह दाख-लक्षण । इन्धन के आश्रय से ही अग्नि की उपलब्धि होती है। अग्नि के संबन्ध से ही इन्धन का इन्धनत्व व्यपदेश माना जाता है। इसलिए अग्नि की उपलब्धि इन्धन के श्राश्रित है, पृथक् नहीं। ऐसी अवस्था में माध्यमिक अन्य पक्ष में दोष देने का अवसर नहीं है। सिद्धान्ती पूर्वपक्षी की नई युक्ति का परीक्षण करता है। कहता है कि प्राप दाल- युक्त ज्वाला से परिगत अर्थ को इन्धन मानते है, और उसके श्राश्रित अग्नि मानते है। आपकी इस कल्पना से भी 'अग्नि इन्धन को बलाता है। यह प्रतीति उपपन्न नहीं होगी। क्योंकि जब ज्वाला से परिगत दाब इन्धन है, और उससे अतिरिक अग्नि नहीं देखी जाती, जिससे इन्धन दग्ध हो, तो बताइए. इन्धन किससे दग्ध होगा ? इसलिए अग्नि इन्धन का दाह करता है, यह सिद्ध नहीं होगा, क्योंकि आप इन्धन से अतिरिक्त अग्नि सिद्ध नहीं कर सकते। लक्षण से