पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/६२

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(Y) से मैं इस भूमिका में बौद्ध-तन्त्र की संक्षेप में पालोचना करने में लगा। किन्तु आलोच्य विषय इतना बरिल एवं विशाल है कि छोटे कलेवर में श्रावश्यक मभी विश्यों का निवेश करना संभव नहीं है । केवल कुछ मुख्य विषयों की चर्चा करने की चेष्टा की गयी है। योग-विहान का भोर रहस्य श्रागम-साधना में ही निहित है। एक समय था, बब भारत की यह गुप्त विद्या चीन,तिब्बत, जापान श्रादि बहु प्रदेशों में समादर माथ गृहीत होती थी। इसी प्रकार इसका धीरे-धीरे नाना स्थानों में प्रसार हुअा था। एक तरफ जैसा बुद्धि के विकास का क्षेत्र गंभीर वार्शनिक एवं न्यायशास्त्र के मालोचन से मार्जित होता था, और उत्तरोत्तर दिगाव विहानों के उद्भव से दर्शन-शास्त्र की पुष्टि होती थी, तो दूसरी तरफ उसी प्रकार योग-मार्ग में भी बोध के क्षेत्र में बड़े-बड़े सिद्ध एवं महापुरुषों का उद्भव होता था। ये लोग प्राकृतिक तथा अति-प्राकृत शक्तिपुत्रों को अपने वश में करके लोकोत्तर मिद्धि-संपत्तियों से अपने को मंडित करते थे। यदि किसी समय इनका प्रामाणिक इतिहास लिपिबद्ध होना संभव हुअा, तो अवश्य हो वर्तमान युग भी उन विद्वान् सिद्धों के गौर पूर्ण जीवन का आभास पा सकेगा। तांत्रिक योग के मार्ग में अयोग्य व्यक्तियों का प्रवेश बत्र अवारित हो गया, तो स्वभावतः नागार्जुन या अरंग का महान् श्रादर्श सब लोग समान रूप से संरक्षित नहीं रख सके। इसीलिए श्रन्यान्य धार्मिक प्रस्थानों के सदृश बौद्ध-प्रस्थान में भी नीति-लंघन और श्राचारगत शिथिलता की प्रमशः वृद्धि हुई। बौद्ध-धर्म के अवसाद के कारणों में यह एक मुख्य है, इसमें सन्देह नहीं; क्योंकि नीति-धर्म के ऊपर ही जगत् के सामाजिक प्रतिष्ठान विधृत है। किन्तु व्यक्तिगत और सामूहिक स्खलन देखकर मूल आदर्श का महत्व की विस्मृति नहीं होनी चाहिये। सिगरा, बनाम गोपीनाथ कविराज -