पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/६२०

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बौद्ध-धर्म-दर्शन अन्यथात्व अभिप्रेत नहीं है। प्राचार्य निष्कृष्टार्थ करते हैं कि प्रकृति तथा धर्म अत्यन्त अविद्यमान एवं अस्वभाव हैं । इनमें जो भावों के अस्तित्व-नास्तित्व की परिकल्पना करते हैं, शाश्वतमाही अस्तिवादी हैं या उच्छेदद्रष्टा नास्तिवादी हैं। इसलिए तत्वग्राही विचक्षण को अस्ति-नास्तिवाद का श्राश्रयण नहीं करना चाहिये। जिसके मत में भावों का स्वभाव ही अभ्युपगत नहीं है, उसके मत में शाश्वत या उच्छेदवाद कैसे बनेगा ? वादी कहता है कि आप नि:स्वभाववादी है, भावदर्शन नहीं मानते। अत: भावों का शाश्वत-दर्शन न मानें यह ठीक हो सकता है, किन्तु उच्छेद-दर्शन मानना होगा। चन्द्रकीर्ति कहते हैं कि भाव-स्वभाव का अभ्युपगम कर पश्चात् उसका अपवाद करें तो अभाव-दर्शन प्रसक्त होगा। जैसे तैमिरिक का उपलब्ध केश वितैमिरिक को किञ्चिद् उपलब्ध नहीं होता और वह नास्ति कहता है । इससे यह नहीं सिद्ध होता कि वितैमिरिक का प्रतिपेय कोई सत् है । इस प्रकार माध्यमिक विपर्यस्त लोगों के मिथ्याभिनिवेश की निवृत्ति के लिए भावों के अस्तित्व का प्रतिषेध करता है । यह कहने मात्र से उस पर उच्छेदद्रष्टा होने का आरोप नहीं लगाया जा सकता। विज्ञानवाद में उच्छेद और शाश्वतवाद का परिहार नहीं चन्द्रकीति विज्ञानवाद पर आक्षेप करते हैं, और सिद्ध करते हैं कि उनके सिद्धान्त से अन्तद्वय का परिहार नहीं होता । विज्ञानवादी चित्त-चैत्त की परतन्त्र सत्ता स्वीकार करते हैं, और उनकी परिकल्पित स्वभावता नहीं मानते । इसलिए अस्तित्व-दर्शन का परिहार करते हैं। इस प्रकार वस्तु की परतन्त्र सत्तर को संक्लेश और व्यवदान का निमित्त मानते हैं, और उसके सद्भाव से नास्तित्व दर्शन का खण्डन करते हैं। किन्तु उनके मत में परिकल्पित विद्यमान है, और परतन्त्र विद्यमान है । इसलिए, दर्शन-द्वय का उपनिपात है। अतः विज्ञानवाद में अन्तद्वय का परिहार नहीं सिद्ध होता। वस्तुतः हेतु-प्रत्यय-जनित होने के कारण किसी की सस्वभावता मानना सर्वथा श्रयुक्त है। इसलिए मध्यमक-दर्शन में ही अस्तित्व-नास्तित्व दर्शन का परिहार होता है, सर्वास्तिवाद या विज्ञानवादी दर्शनों में नहीं। विज्ञानवाद माध्यमिक संमत परमार्थ-दर्शन का उपाय है, अतः सांमितीयो की तरह वह नेयार्थ है। मगवान् ने महाकरुणा के अधीन होकर निम्न भूमि के विनेयों के अनुरोध से विशनवाद की देशना की है। .. मस्तीति सावतमाहो नासीयुददर्शनम् । खस्मावस्तिवनास्तिर मानीवेत विचक्षणः ।। (५) २. समाधिरामसूत्र में उकरे- गीतार्थसूत्रान्सविशेषजामति बमोपविधा सुमोन शून्पता। यस्मिन् पुनः पुद्गलसवयो नेयार्थनो जामति सर्वधर्मान् ।। (मा. का. १. २.६)