पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/६३५

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ऊविक्ष मण्याय एक सिद्धान्ती केवल हेतुवादी हैं। उनके मत में हेतु ही निरुद्ध होकर कार्य रूप में व्यवस्थित हो जाता है | प्राचार्य कहते हैं कि फल यदि हेतु-रूप होगा, तो हेतु का संक्रमण मानना पड़ेगाजैसे-नट एक वेब का त्याग कर वेशान्तर का ग्रहण करता है। इस प्रकार हेतु के संक्रमण मात्र से अपूर्व फल का उत्पाद भी नहीं होगा। इसके अतिरिक्त हेतु-संक्रमण मानने से हेतु की नित्यता सिद्ध होगी, फलतः उसका अस्तित्व ही समाप्त हो जायगा, क्योंकि नित्य वस्तुओं का अस्तित्व नहीं होता। श्राचार्य कहते हैं कि वास्तविकता ता यह है कि जिस प्रकार निरुद्ध या अनिरुद्ध कोई हेतु फल को उत्पन्न नहीं कर सकता, इसी प्रकार उत्पन्न या अनुत्पन्न फल का उत्पाद नहीं बताया जा सकता । हेतु में किसी प्रकार का विकार न आवे और वह फल से संबद्ध हो जाय यह असंभव है। क्योंकि नो विकृत नहीं होता यह हेतु नहीं होता। अथ च, फज़ से वह संबद्ध भी कैसे होगा क्योंकि वादियों के अनुसार हेतु में फल विद्यमान है । हेतु फल से असंबद्ध होकर भी फल को उत्पन्न नहीं करता, क्योंकि असंबद्ध हेतु किस फल को उत्पन्न करेगा ? यदि करे तो समस्त फलों को उत्पन्न करेगा या किसी को नहीं करेगा। श्राचार्य कहते हैं कि हेतु-फन की परस्पर संगति (योग ) भी नहीं होगी। अतीत फल का प्रतीत हेतु के साथ संगति नहीं होगी; क्योंकि दोनों अविद्यमान हैं । अनागत हेतु से अतीत फल की संगति नहीं होगी, क्योंकि एक नष्ट और दूसरा अजात है । इस प्रकार दोनों श्रविद्यमान है, और भिन्नकालिक हैं। जैसे वर्तमान हेतु से अतीत-फल की तथा अतीत-फल की अतीत, अनागत तथा वर्तमान हेतुत्रों के साथ संगति असंभव है, उसी प्रकार वर्तमान फल की कालिक हेतुत्रों से संगति भी असंभव है । पूर्वोक्त गति से अनागत फल भी अतीत, अनागत तथा प्रत्युत्पन्न हेतुत्रों से संगत नहीं होगा। श्राचार्य कहते हैं कि हेतु-फल की संगति नहीं है, इसलिए हेतु फल को उत्पन्न नहीं कर सकता, और संगति कालत्रय में संभव नहीं है, अतः हेतु से फलोत्पाद का सिद्धांत सर्वथा असंगत है। इस प्रकार हेतु से फल की एकता माने अथवा अनेकता हेतु में फल का सद्भाव माने या असद्भाव, किसी प्रकार हेतु से पल की उत्पत्ति नहीं होगी। उत्पाद-विनाश का निषेध पहले कालत्रय का खएइन किया गया है, किन्तु कालत्रय का समूल निषेध तब तक नहीं होगा जब तक वस्तुओं की संभव-विभव प्रतीति अतात्विक सिद्ध न की जाय । अतः श्राचार्य उसका खण्डन करते हैं। संभव-विभव एक दूसरे के साथ-साथ होते हैं, या दूसरे से विरहित ? संभव (उत्पाद ) के बिना विभव ( विनाश ) नहीं हो सकता । यदि बिना संभव के विभव हो तो जन्म के बिना मरण भी हो । संभव के साथ भी विभव नहीं होगा, अन्वया जन्म-मरण एक काल में हों। विभव के बिना संभव नहीं होता, अन्यथा कोई पदार्थ कभी अनित्य न हो। विभव के साथ संभव नहीं होगा, अन्यथा जन्म-मरण एक काल में होगा। सहभाव और असहभाव से मिल कोई तीसरा प्रकार नहीं है, जिससे संभव-विभव की सिद्धि हो ।