पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/६३८

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बौर-भर्मदर्शन में स्कन्ध नहीं है, और सन्धों में तथागत नहीं हैं। तथागत मन्धवान् भी नहीं है, क्योंकि वह सन्ध से भिन नहीं है । एक अन्य मत है कि अनासक-स्कन्धों ( शील, समाधि, प्रज्ञा, विमुक्ति, विमुक्तिज्ञान दर्शन ) से तयागत उपात्त है। वह अयाच्य है, अतः उन्हें स्कन्धरूप या स्कन्ध से व्यतिरिक नहीं कहा जा सकता। प्राचार्य कहते हैं कि यदि बुद्ध अमल स्कन्धों का उत्पादन करके प्रञ्चत होते हैं, और भवाच्य हैं तो आष्ट है कि स्वभावत: नहीं है, केवल प्रतिबिम्ब के समान प्राप्त होते हैं। जो स्वभावतः नहीं वह परभावतः भी नहीं होता, इसे अनेकधा स्पष्ट किया गया है । यदि वादी कहे कि प्रतिबिम्ब स्वभावत: नहीं होता, किन्तु मुख और श्रादर्श की अपेक्षा करके होता है। इसी प्रकार तथागत भी रूभावतः अविद्यमान हैं, किन्तु अनासव पंचस्कधों का उत्पादन कर परभावतः होंगे। इसके उत्तर में प्राचार्य कहते हैं कि एसी स्थिति में प्रतिबिंत्र के समान तथागत भी अनात्मा होंगे। किन्तु जो प्रतिबिम्ब के तुल्य अनात्मा और निःस्वभाव होगा, वह अविपरीत मार्गगामी भावरूप तथागत कैसे होगा ? खभाव-परभाव के अतिरिक्त तथागत की तृतीय कोटि क्या होगी? यदि तथागत सन्धों से अन्य या अनन्य नहीं है और केवल स्कन्धों के उपादान से प्रज्ञापित होते हैं, तो स्कन्धों को ग्रहण करने से पूर्व तथागत को होना चाहिये, जिससे पश्चात् स्कन्धों का उपादान करें। किन्तु स्कन्धों का उपादान न करके तथागत की सिद्धि नहीं होगी। तथागत सन्धों से अभिन्न, भिन्न तथा भिन्न-भिन्न नहीं हैं। श्राधार या प्राधेय भी नहीं हैं, अत: वह अविद्यमान है । बादी मायाम के इस सिद्धान्त से उत्तरत हैं। वे कहते हैं कि हम लोग कणाद, जैमिनि, गौतम, दिगम्बर श्रादि के उपदेशों की स्पृहा को छोड़कर सकल जगत् के एकमात्र शरण्य, अशानाधिकार के एकमात्र निवारक तथागत की शरण में आये, किन्तु श्रापने उनकी सत्ता का निषेध करके हमारी सारी अाशा समास कर दी। चन्द्रकीर्ति कहते हैं कि वस्तुत: आप जैसो की तरफ से हम लोगों की भाशा मारी गयी। श्राप मोक्ष के लिए समस्त वादियों के मत को छोड़कर परम शास्ता तथागत की शरण में प्रतिश्न हुए थे, किन्तु उनके नैरात्म्यवाद के सिंहनाद को सह नहीं सके। पुनः विविध कुदृष्टि- न्यालों से प्राकुलित मार्ग के अनुगमन के लिए तत्पर हो गये । क्या प्रापको अब तक नहीं मालूम हुश्रा कि तथागत अपना या स्कन्धों का अस्तिब कभी शापित नहीं करते। हम लोग तथागत का अभाव केवल इस श्रीधार पर नहीं कहते कि वह निष्प्रपञ्च है, बल्कि इस प्राधार .. मन मान्या स्कायो मास्मिन् स्कम्बा नसः। तमामः स्वाय समोऽत्र तथागतः ॥ (२)