पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/६४८

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चौड-धर्म-दर्शन चन्द्रकीर्ति निर्वाण की सर्वकल्पना-क्षयता के पक्ष में भगवान् का एक वचन उद्धृत करते हैं, और उसका अभिप्राय उतार्य में पर्यवसित करते हैं- निवृत्तिधर्माण न अस्ति धर्मा ये नेह अस्तीन ते जातु अस्ति । अस्तीति नास्तीति च कल्पनावताम् एवं चरन्तान न दुःख शाम्यति ॥ निरूपविशेष निर्वाण धातु में क्लेश-कर्मादि का या स्कन्धों का सर्वथा अस्तित्व नहीं है, यह सभी वादियों को अभिमत है । जैसे अन्धकार में रज्जु में सर्प उपलब्ध है, किन्तु प्रकाश के उदय के साथ नष्ट हो जाता है; उसी प्रकार निर्वाण में समस्त धर्म नष्ट हो जाते हैं। जैसे अन्धकारावस्था में भी रज्जु रज्जु ही या, सर्प नहीं था, उसी प्रकार क्लेश-कर्मादि समस्त पदार्थ संसारावस्था में मी तत्वतः नहीं हैं। जैसे तिमिर रोगाक्रान्त को सर्वथा असत् केश का प्रतिभास होता है, वैसे ही असत् आत्मा और असत् आत्मीयों के ग्रह से ग्रस्त पृथग्जन को असत् भावों का मी सत्यतः प्रतिभास होता है, यही संसार है। जैमिनि, कणाद, कपिलादि से लेकर वैभाषिक पर्यन्त सभी भावों के संबन्ध में अस्ति- वादी ( सस्वभाववादी) हैं। नास्तिवादियों में उच्छेदवादी नास्तिक हैं, और उनके अतिरिक्त वे, बो अतीत-अनागत अवस्था की विज्ञप्ति तथा विप्रयुक्त संस्कारों की सत्ता तो नहीं मानते, किन्तु तदतिरिक्त की सत्ता मानते हैं । नास्तिवादी वे भी हैं, जो परिकल्पित-स्वभाव नहीं मानते, किन्तु परतन्त्र तथा परिनिष्पन्न स्वभावों को मानते हैं। अन्तिम दो (सौत्रान्तिक और विज्ञान- वादी ) वस्तुतः अस्ति-नास्तिवादी हैं, जो उक्तगाथा में नास्ति-कोटि में संगृहीत हैं । उपयुक्त उभय कोटि के लोगों का संसार-दुःख शान्त नहीं हो सकता । इस प्रकार निर्वाण में न किसी का प्रहाण ही संभव है और न निरोध ही, अतः वह सर्वकल्पना-क्षय रूप है। प्राचार्य नागार्जुन निर्वाण के संबन्ध में अन्य वादियों के मत का खण्डन करते हैं। भावस्लावन निर्वाणम् -निर्वाण भाव नहीं है, अन्यथा उसका जरा-मरण होगा। भाव का लक्षण जरा-मरण है । जरा-मरण रहित वपुष्प होता है । पुनश्च, यदि निर्वाण भाव है तो वह संस्कृत होगा, असंस्कृत नहीं; क्योंकि असंस्कृत किसी देश काल या सिद्धान्त में भाव नहीं होता। निर्वाण भाव होगा तो अपने कारण-सामग्रियों से उत्पन्न होगा, किन्तु निर्वाण किसी से उत्पन्न नहीं होता । कोई भाव हेतु-प्रत्यय-सामग्रियों का बिना उपादान किये नहीं होता। बचमावरच निर्वाणमनुपादाय तस्मयम्-निर्वाण अभाव भी नहीं होगा, अन्यथा निर्वाण अनित्य होगा, क्योंकि क्लेश-जन्मादि का प्रभाव निर्वाण है तो वह क्लेश-जन्म की अनि- त्पता है। किन्तु निर्वाण की अनित्यता इष्ट नहीं है। अन्यथा सबका बिना प्रश्न मोच होगा। यदि निर्वाण अभाव होगा तो हेतु-प्रत्यय का विना उपादान किये न होगा। कोई भी विनाश किसी का उपादान करके ही होता है, जैसे लक्ष्य का श्राश्रयण करके लक्षण