पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/६५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

विश अध्याय ५६६ दिङ्नाग ने शान की जो मीमांसा की है, उसका श्रारंभ इसी विचार से होता है। प्रमाण दो है; केवल दो है प्रत्यक्ष और अनुमान; क्योंकि विशेष और सामान्य यही विषय के दो प्रकार है। 'विशे' का समकक्ष 'क्षण' है, जो सर्व का आधार है । 'सामान्य हमारी कल्पना के निर्माण के तुल्य है । 'विशेष' से वह विशेष समझना चाहिये जो विवेचन से सिद्ध होता है, वह विशेष जो सर्व सामान्य लनणों से रहित है। 'विशेष' से अभिप्राय किसी अर्थ विशेष से नहीं है, जिसमें सामान्य गुण पाये जाते हैं। दिङ्नाग और धर्मकीर्ति का विशानवाद इसमें है कि वह तत्व की दो भूमियाँ सिद्ध करते हैं-एक परमार्थ द्रव्य जिसका कोई रूप नहीं है, जो परिकल्प निर्माण का आधारमात्र नहीं है। दूसरी भूमि यह परिकल्प है। यह दूसरे प्रकार का तत्व शुद्ध कल्पना या आभास नहीं है । यह मृगमरीचिका, श्राकाश-कुसुम, शशग के समान कल्पनामात्र नहीं है। दिङ्नाग और धर्मकीर्ति का सिद्धान्त उस वाद का प्रत्यक्ष फल है, जो प्रत्यक्ष शान और अनुमानाश्रित ज्ञान में मौलिक भेद करता है। कालवाद बौद्धों के शान-सिद्धान्त का विवेचन करने के पूर्व हम काल और दिक् पर विभिन्न समय में निरूपित बादो पर विचार करेंगे। शंकर, माधव और अन्य दार्शनिक अपने विवेचन में कालवाद और दिग्वाद को शीर्ष स्थान देते है, और बौद्धों के वाद का खण्डन करते हैं । दिङ्नाग, धर्मकीर्ति और धर्मोत्तर ने इनका सविस्तर वर्णन नहीं दिया है, किन्तु उन्होंने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि वह समझते थे कि सब उनसे परिचित है; और सब जानते हैं कि उनके शास्त्र की यह पीठभूमि है । दिग्वाद पर सामग्री स्वल्प है, अधूरी और अस्पष्ट है । विज्ञानवादियों के लिए भी इसका महत्वन था। बाह्य जगत् की अविद्यमानता के प्रमाण से दिक् की विद्यमानता अनिवार्य रूप से सिद्ध होती है। अन्य दर्शनों काल को एक स्वतन्त्र पदार्थ माना है, जिसका संबन्ध द्रव्यों से हो सकता है, अथवा उसे द्रव्यों का एक गुण माना है । शाश्वत काल का वाद भी मिलता है, सकल भव का प्रथम कारण है। अन्त में बौद्धों का वाद काल की सत्ता का प्रत्याख्यान करता है। दिक् एक और शाश्वत है, यह भी वाद मिलता है। बौद्ध इसका भी प्रत्याख्यान करते हैं। किन्तु दिग्वाद के प्राचीन रूप का समझना पारिभाषिक शब्दों के कारण कठिन हो गया है। दिक् के अतिरिक्त 'आकाश' शब्द का भी व्यवहार होता है। इन शब्दों का अर्थ मिम मिन्न प्रकार से किया जाता है। कभी इसे अनन्त का प्रतीक माना गया है, ओर इस रूप में यह काल और दिक् दोनों को व्याप्त करता है। कभी इसका अर्थ अन्यथात्व होता है। वे दो गन्द दिक् और श्राकाश साथ साथ दो भिन्न द्रव्यों का ज्ञापित करते हैं, किन्तु इनका