पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/६६०

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बौद-धर्म-दर्शन हम अपने नित्य के व्यवहार में इन सब शब्दों का प्रयोग करते हैं। श्रतः इनका व्यवहारत्व सिद्ध होता है, जो संभव न होता, यदि इनका अाधार काल्पनिक होता; अर्थात् यदि काल-संबध को व्यक्त करने वाले सब शब्दों के समकक्ष और इनसे संबन्धित सब भावों के समकक्ष कोई एक भिन्न वस्तु, एक विशेष द्रव्य न होता । दूसरे शब्दों में यह आवश्यक है कि हम काल शब्द और काल-संज्ञाओं को किसी वास्तविक काल से संबन्धित करें। वैशेषिक सूत्र ( रारा ) का यही अर्थ है-"पूर्व, अपर, युगपत् , अयुगपत्, चिर और चित्र काल के लिङ्ग है ।" वलदेव विद्याभूपण भी, जो गोविन्द-भाष्य के ग्रन्थकार है, यही कहते हैं---कालश्च भूतभविष्यवर्तमानयुगपविक्षिप्रादिव्यवहारहेतुः । २. दूसरी युक्ति का संबन्ध इहलोक (=दृष्टधर्म ) की सकल वस्तुओं को अनित्यता और अन्यथात्व से हैं। असाधारण कारणों से कार्यों की उत्पत्ति होती है, किन्तु इनके अतिरिक्त एक साधारण कारण भी है, जिस हेतु से कार्यों की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश होता रहता है। दृश्य जगत् के प्रत्येक वस्तु की यह तीन अवस्थाएँ सर्वसाधारण है । असाधारण कारण इनके लिए पर्याप्त नहीं हैं। दूसरी ओर काल इसका साधारण कारण माना जा सकता है । इसीलिए प्रशस्तपाद में काल का लक्षण इस प्रकार वर्णित है- "सब कार्यों की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश का हेतु काल है। काल-द्रव्य स्वभावतः इन्द्रियगोचर नहीं है। उसकी सत्ता का अनुमान अप्रत्यक्ष रूप से उसके सामर्थ्य से ही हो सकता है। जिस प्रकार मनस् , श्रात्मा और श्राकाश के विद्यमान होने का हम अनुमान करते हैं । प्रभाकर का यह मत अवश्य है कि काल पडिन्द्रिय-पास है, और उसका अनुमान युगपद् भाव अादि से न करना चाहिये। केवल प्रभाकर ही एक ऐसे है, जो अन्य कालवादियों से भिन्न मत रखते हैं। कबीर मामकी समानता, उसके लक्षण मीमांसक, वैशेषिक और कुछ अंश में वेदान्ती सर्व संमति से काल-द्रव्य के निम्न चार लक्षण बताते हैं: (१) सूक्ष्मत्व, (२) विभुत्ल, (३) नित्यत्व और (४) एकन्य अनवयवत्वं)। प्रकाश के भी यही लक्षण है। इस प्रकार भारतीय-दर्शन में काल और आकाश अभौतिक तथा भौतिक द्रव्यों के बीच में है। अभौतिक के समान इनमें सूक्ष्मत्व, एकत्व और नित्यत्व है, तथा भौतिक द्रव्यों के समान इनमें अचेतनत्व और जाज्य है । फलस्वरूप भारतीय दृष्टि में काल और आकाश के बीच कुछ साम्य है। यह दो द्रव्य हैं, जिनमें सब संस्कृत धर्म (भाव) पुनः यह दो द्रव्य ऐसे हैं, जो पृथिवी, अप, तेज और वायु से केवल इस बात में भिका है कि इनका सूक्ष्मल्ब अधिक मात्रा में है। यही कारण है कि यह स्थूल वस्तुओं को बिना प्रतिषात के व्यास कर मकते है।