पृष्ठ:बौद्ध धर्म-दर्शन.pdf/६६२

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बौद-धर्म-दर्शन न याद् विमाषा में कासवाद अब हम उन दर्शनों को लेंगे, जो काल को द्रव्य के रूप में नहीं स्वीकार करते हैं । सांप-पहले हम सांख्य को लेते हैं। वाचस्पतिमिश्र ( सांपतत्वकौमुदी, ३३) कहते हैं कि जिस काल को वैशेषिक द्रव्य के रूप में ग्रहण करते हैं, वह अकेले भविष्यत् आदि शब्द-मेदों को उत्पन्न नहीं कर सकेगा । काल केवल उपाधि है, जिसके भेद के कारण भविष्यत् प्रादि भेद उत्पन्न होते है। अतः सांख्य काल को अनावश्यक समझते हैं और यही कारण है कि यह काल को तत्वान्तर के रूप में ग्रहण नहीं करते (न कालरूपतत्वान्तराभ्युप- गम इति)। इसके होते हुए भी सांख्य वस्तुतः वैशेषिक श्रादि से प्रागे न बढ़ सका । शाश्वत और सुट-काल का भेद इस रूप में सुरक्षित है कि शाश्वत प्रकृति गुणविशेष है, और सुष्ट-काल को आकाश मान लिया है, जो सूर्य और ग्रहों की गतिक्रिया है । सांख्यवादी भी काल को साधारण कारण मानते हैं ननु अात्मा स्वभावतो न बद्धः, किन्तु कालवशाबद्धो भविष्यतील्याह.-"न कालयोगतो व्यापिनो नित्यस्य सर्वसंबन्धात् । भवत्वयम् , यदि तस्य कदापि कानयोगः स्यात् , था। नित्यस्य व्यापिनः सर्वकालसंबन्धोपाधित्वात् ।" इसका प्रत्याख्यान नहीं है कि काल ( यथा श्राकाश, कर्म आदि) का 'परकारणत्वं सामान्यरूपेण' होता है । केवल इसका प्रत्याख्यान है कि यह एक असाधारण कारण है । वास्तव में सांख्य ने कालवाद पर कोई अन्यषण करने की उ.सुकता नहीं दिखाई है । उसने केवल काल को एक पृथक तत्व नहीं माना है, किन्तु इसने कालवाद मंबन्धी अन्य विचारों का अनुकरण किया है। वस्तुतः कालवाद का विवेचनात्मक विश्लेषण करने का श्रेय बौद्धधर्म को है । सामग्री की कमी से विषय का सविस्तार वर्णन संभव नहीं है, किन्तु कुछ तथ्य निश्चित हो सकते हैं। कोई ऐसा कालवाद नहीं है, जो सब निकायों को समान रूप से मान्य हो। इसलिए यदि हम कहें कि बौद्ध कालवाद का खण्डन करते हैं, तो यह वर्णन केवल कुछ मुख्य निकायों में ही लागू होगा। शिपिटक पूर्व-त्रिपिटकों की रचना के पूर्व ही बौद्धधर्म का प्रभव हुना था, और उसी समय बौद्धधर्म का वह रूप जो हीनयान के विकास के पूर्व का है, प्रचलित था। योगाचार के १०० धर्मों की सूची में दिक् के साथ काल भी विप्रयुक्त मंस्कार के अन्तर्गत परिगणित है । इसका उल्लेख अपेक्षया पीछे के ग्रन्थों में मिलता है, इम युक्ति का कोई महत्व नहीं है । हीनयान की अपेक्षा महायान में बौद्धधर्म के प्राचीन अंश कहीं अधिक सुरक्षित पायें जाते है। खोज करने पर हीनयान के साहित्य में भी इसके प्रमाण पाये जायेंगे। अब तक ऐसा नहीं होता, तब तक हम केवल इसका अनुमान ही कर सकते हैं कि हीनयान के पूर्वकाल में बौदों की काल के संबन्ध में क्या कल्पना था ?